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दीदी की चिठ्ठी नियमित स्तम्भ बच्चों की छोटी कहानियाँ हो या बडी कहानियां बाल लेखन ने हमेशा मुझे प्रेरित किया है … बच्चों पर न सिर्फ कहानियां लिखी बल्कि हरियाणा साहित्य अकादमी से बाल साहित्य पुरस्कार ” मैं हूं मणि ” के लिए भी मिला. नेशनल बुक ट्रस्ट से बाल कहानी ” काकी कहे कहानी” […]
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क्लिक करिए और सुनिए 3 मिनट और 46 सैकिंड की मजेदार ऑडियो बाल कहानी जब पापा ने बनाए मटर के चावल जब पापा ने बनाए मटर के चावल फार्दस डे के उपलक्ष में सुनिए कहानी बात बहुत समय पहले की है जब मम्मी लोग का काम होता था रसोई सम्भालना और पापा लोग का काम […]
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क्लिक करिए और सुनिए बच्चों की कहानी चॉकलेट की बेटी बाल कहानी- ऑडियो – चॉकलेट की बेटी कुछ दोस्तों की फरमाईश पर आज मेरी कहानी फिर बच्चों के लिए है और कहानी का नाम है… चॉकलेट की बेटी … असल में, छोटे बच्चों को चॉकलेट का बहुत शौक होता है. 4 मिनट और 5 सैकिंड की कहानी […]
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on 12/22/2015
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दीदी की चिठ्ठी, दैनिक नवज्योति, जयपुर से हर रविवार प्रकाशित होने वाला नियमित स्तम्भ …इसमे दीदी यानि मैं अलग अलग बातें करके नन्हें बच्चों का मनोंरंजन करती और मनोरंजन के साथ अक्सर सीख भी छिपी होती …. शरारती बच्चे, छुट्टियां और घर परिवार हैल्लो नन्हे दोस्तो, कैसे हो! क्या हो रहा है? इतना शोर शराबा […]
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on 12/16/2015
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Audio kid stories – Chocolate बाल कहानी चाकलेट की बेटी Audio kid stories – Chocolate आज आपको सुनाते हैं बच्चों की कहानी चाकलेट की बेटी इसमें छोटी सी मणि को चाकलेट का बहुत शौक है पर एक दिन ऐसा क्या हो जाता है कि वो खुद ही चाकलेट खाने से मना कर देती है […]
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on 12/15/2015
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Audio Storytelling- kids story -Princess मैं हूं राजकुमारी मणि मुझे बच्चों की कहानियां लिखने का बेहद शौक रहा है. बच्चों की कहानियां लिख कर खुद भी मन बच्चा ही बन जाता है. आज आप सुनिए मेरी लिखी बाल कहानी मैं हूं राजकुमारी मणि और जरुर बताना कि कहानी कैसी लगी Audio Storytelling- kids story -Princess […]
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हिन्दी क्विज बात सन 1993 की है जब मैं अपने लेखन मे नए नए प्रयोग करती थी. कभी कहानी कभी व्यंग्य, कभी जानकारी तो कभी सामान्य ज्ञान… सामान्य ज्ञान के अंर्तगत मैने क्विज लिखनी शुरु की. ये बात है हरियाणा के हिसार की. समाचार पत्र का नाम है पाठक पक्ष और ये प्रकाशन है सितम्बर […]
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on 12/7/2015
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कथा कहानी बहुत सम्भाल कर रखी हुई हैं ये कतरनें … पर कागज ही तो है पीला पडने लगा है इसलिए सोचा कि क्यू ना ब्लाग पर स्केन करके डाल लू इसी बहाने हमेशा मेरे पास रहेगा मेरा ये अनमोल खजाना यह कहानी गाजियाबाद (यूपी) के सांध्य दैनिक अथाह में 10 मार्च 1992 को प्रकाशित […]
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on 12/6/2015
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अफवाह वाह या आह कोई हादसा होने पर अफवाहों का बाजार गर्म हो जाता है पर अफवाह कितनी घातक हो सकती है इस बात को भी नही भूलना चाहिए.. ( दैनिक जागरण में जागरुक पाठक के अंतर्गत कुछ साल पहले)
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on 12/6/2015
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बच्चों की दुनिया ( दैनिक जागरण में प्रकाशित ) समय समय पर बच्चों के लिए लेख , कहानियां अलग अलग समाचार पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही. बच्चा बन कर बच्चों के लिखना बहुत मजेदार अनुभव है … ( सांध्य दैनिक समर घोष में प्रकाशित) बच्चों के लिए आयोजित ढेर सारी प्रतियोगिताए
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बच्चे और किताबें बच्चे किताबें और उनकी कल्पना शक्ति … किताबों के माध्यम से वो अपनी कल्पना की उंची उडान भर सकते हैं जबकि टीवी देख कर कल्पना शक्ति कम होती जाती है …( कुछ कतरनें ) बच्चे और किताबें
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on 12/4/2015
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कतरनें समाचार पत्रों की ये हैं कुछ कतरनें जो अब पीली पडने लगी हैं बात सन 98 की है जब जयपुर आकाशवाणी में प्रस्तुति थी… फिर आकाशवाणी हिसार के कार्यक्रम नारी संसार में साक्षात्कार… और फिर कुछ समय बाद ज़ी न्यूज की संवाददाता के तौर पर अखबार में खबर … !!! ये सब एक दम […]
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on 12/3/2015
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लक्ष्य और निगाहें बच्चे और उनका मनोविज्ञान आज के बच्चे अपना पूरा ध्यान सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, गूगल , टवीटर आदि पर देते है. बहुत लोग इसे बुरा भी कहते हैं कि बच्चे बिगड रहे हैं पर इसके माध्यम से इसका उदाहरण देकर समझाया भी जा सकता है… कैसे ??? ऐसे … हुआ यूं कि […]
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बचपन मासूम बचपन आज सुबह हमारे शहर में बहुत धुंध थी. मैं बाहर खडी मौसम देख रही थी. कुछ बच्चे धुंध में बच्चे अपनी स्कूल बस की इंतजार कर रहे थे और कुछ बच्चे बाते करते हुए जा रहे थे.तभी पीछे से एक बच्चे की आवाज आई देख मै सिग्रेट पी रहा हूं. मै हैरान […]
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on 11/21/2015
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जादू की ट्रिक्स जादू बच्चे हो या बडे सभी को भाता है . जादू के नाम पर कई बार हाथ की सफाई भी होती है तो कई बार कैमिकल का असर होता है और हम इसे जादू समझ बैठते हैं और अक्सर इसी बात का फायदा उठाते हैं साधु बाबा और वो हमे बुद्दू बना […]
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on 10/13/2015
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मोनिका गुप्ता( हरियाणा साहित्य अकादमी अवार्ड )
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हरियाणा साहित्य अकादमी सम्मान
बात 2009 की है जब मेरी पहली पुस्तक” मैं हूं मणि” को हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से “बाल साहित्य पुरस्कार” मिला. इसके इलावा अभी तक दो अन्य लिखी किताबों “ समय ही नही मिलता”, “ अब मुश्किल नही कुछ भी” को हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से अनुदान मिला.
पहली पुस्तक और उसे ही बाल साहित्य पुरस्कार मिलना बेहद खुशी और गर्व की बात थी. ऐसी खुशी और गर्व उन सभी साहित्यकारों और लेखकों को होता होगा जिन्हे ये सम्मान मिलता है. अब मैं आती हूं आज की बात पर कि आज इतने साल बाद मुझे यह बताने की जरुरत क्यो पडी. वो इसलिए कि कई साहित्यकारों द्वारा मिला सम्मान लौटाया जा रहा है.
इसी बारे में, पिछ्ले एक दो दिन में बहुत लोगो को सुना और उनकी प्रतिक्रिया भी देखी. बेशक, हम जिस समाज मे रहते हैं हमे अगर अपनी बात रखने का हक है तो उसी तरह हमे किसी बात का विरोध करने का भी हक है पर सम्मान को लौटाने का ये तरीका सही नही. हां एक बात हो सकती थी कि देश के सभी साहित्यकारों और लेखको को इसमे शामिल करके उनकी राय जानी जाती और फिर एक जुट होकर ऐसा कदम उठाया जाता जो समाज हित मे होता तो शायद कुछ बात बनती.
कोई कदम उठाने से पहले एक बात जरुर जहन में रखनी चाहिए कि ना मीडिया हमारा है और न ही नेता हमारे हैं हमें अगर अपनी बात रखनी है तो कलम को ताकत बनाए और उसी के माध्यम से अपना विरोध व्यक्त करें. टीवी चैनल पर एक धंटे बैठ कर, बहस कर, लड झगड कर अपने स्तर से गिर कर बात रखने का क्या औचित्य है… !! धरना प्रर्दशन और भूख हडताल भी कोई समाधान नही जैसा कुछ लोग अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं.
हमारी ताकत हमारी लेखनी है और सोशल मीडिया एक खुली किताब है. इस पर हम सब मिलकर अपनी बात दमदार तरीके से रखे तो सोच मे जरुर बदलाव आएगा.
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मोनिका गुप्ता( हरियाणा साहित्य अकादमी अवार्ड )
मोनिका गुप्ता( हरियाणा साहित्य अकादमी अवार्ड )
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on 9/12/2015
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हिंदी दिवस …
हिंदी दिवस पर मेरा धन्यवाद गूगल को है जिसमे हिंदी की पहचान को बढाया और हमे अपनी बात हिंदी में लिख पाए … बेशक हिंदी का क्रेज विदेशियों में भी बहुत बढा है और पढ कर अच्छा लगता है जब वो हमारी हिंदी में लिखी पोस्ट को पसंद करते हैं
हिंदी दिवस
बेशक पलडा आज भी अंग्रेजी का ही भारी है फिर भी तुम हमें हमेशा से प्रिय थी , हो और हमेशा रहोगी … मेरी प्यारी हिंदी
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बाल कहानी-शैंकी
हर रविवार की तरह आज भी नन्हीं मणि को अपने कर्मा चाचू का इन्तजार था। मणि अपने मम्मी पापा के साथ शहर में रहती थी और उसके कर्मा चाचू गाँव में काम करते थे पर हर रविवार वह शहर आ जाते थे। मणि को परियों की, राजकुमारियों की और जादू की कहानियां सुनने का बेहद शौक था। उसके मम्मी-पापा तो उसे कहानियां सुनाते नही थे। वह दोनों ही दफ्तर में काम करते थे पर मणि को कामिक्स पढ़ कर उतना आनन्द नहीं आता था जितना कि कहानियां सुन कर आता था। कर्मा चाचू की वह लाड़ली भतीजी थी और वह उसे पूरी दोपहर कहानी सुनाते रहते।
मणि इकलौती बेटी होने के कारण वह सभी की चहेती थी। मणि का जन्मदिन भी करीब आने वाला था। उसके चाचू उस दिन उसके लिए छोटा सा सफेद रंग का कुत्ता लाए। मणि को पहले तो उससे बहुत ड़र लगता रहा। जैसे ही वो भौं-भौं करता मणि की ड़र के मारे अंगुलियां मुंह में चली जाती पर कुछ ही घण्टों में वह उससे हिल-मिल गर्इ। मणि के मम्मी-पापा भी उस छोटे से कुत्ते को देखकर बेहद खुश हुए। मणि ने उसका नाम शैंकी रखा। चाचू की कहानियां सुनने का शौक भी वैसे ही बरकरार रहा। उसे बड़ा ही अच्छा लगता था जब पुरानी कहानियों में मेंढ़क राजा बन जाता था या फिर सिर्फ छूने से ही पत्थर परी बन जाती। दो सप्ताह तक चाचू को किसी जरूरी काम से कलकत्ता जाना पड़ा। पर वह वायदा करके गए कि वापिस आने के बाद और खूब सारी कहानियां सुनोंगे।
मणि अपनी पढ़ार्इ और शैंकी में मस्त हो गर्इ। एक दिन जब मणि स्कूल गर्इ हुर्इ थी उसके पापा दफ्तर जाने के लिए गैराज से कार निकाल रहे थे कि अचानक शैंकी को जाने क्या हुआ वो भागा-भागा आया और गाड़ी के टायर के नीचे आकर दबने की वजह से मर गया। अब मणि के मम्मी-पापा दोनों उदास हो गए। उन्हें सबसे ज्यादा मुशिकल यह हो रही थी कि वह मणि को कैसे समझाऐंगे क्योंकि अभी कर्मा भी नहीं है। ऐसे मौके पर कर्मा तो सारी बात संभाल लेता। स्कूल से आने के बाद मणि को शैंकी के मरने की बात ना बता कर यह बताया गया कि वो सुबह ही गेट खुला रहने की वजह से भाग गया था। फिर तो मणि ने जो रो-रो कर हाल बेहाल किया वो तो उसके पड़ोसी भी जान गए थे कि शैंकी कहीं बाहर चला गया है और वह जल्दी ही खुद-ब-खुद लौट आएगा।
दो-तीन दिन इन्तज़ार में बीते पर शैंकी नहीं आया। आता भी कैसे? इस बीच में मणि के पिताजी की कलकत्ता कर्मा से बात हुर्इ और उन्होंने सारी बातें उसे बता दी। कर्मा कल आ रहा है। चलो, अब तो वह सम्भाल ही लेगा। पर इन दो-तीन दिन में ना तो मणि ने ढंग से खाया और ना ही किसी से बात की। यहां तक की वो तो एक स्कूल भी नहीं गर्इ।
एक सुबह, मणि ने देखा घर के बाहर आटो आकर रूका, उसमें चाचू थे और ये क्या उनके पास एक छोटा-सा पिंजरा था और उसमे प्यारा-सा तोता था। वो अपनी जगह चुपचाप बैठी रही। चाचू उसके पास आकर बैठे और कहने लगे कि भर्इ, तुमने शैंकी को क्या कह दिया था। वो मेरे पास कलकत्ता आया था।
क्या….? आपके पास….! मैंने तो कुछ भी नहीं कहा। चाचू ने बताया कि शैंकी कहा कि मणि दी का मन करता है कि वह मुझे स्कूल ले जाए और मुझसे बातें करे पर मैं स्कूल तो नहीं जा सकता और मीठी-मीठी बातें भी नहीं कर सकता इसलिए आप मुझे तोता बना दो जब भी दीदी स्कूल जाऐंगी मैं उड़ कर उन्हें स्कूल तक छोड़ने जाऊंगा और वापिस आ जाऊंगा। और शाम को ढ़ेर सारी बातें करेंगे…. तो, लो भर्इ यह तुम्हारा शैंकी अब मैंने उसे तोता बना दिया है। तभी तोता भी बोलने लगा, हैल्लो……………. मैं शैंकी हूं, मणि………. मैं शैंकी हूं। मणि उस तोते से मिल कर इतनी खुश हुर्इ और चाचू के हाथ से पिंजरा छीन कर अपने कमरे में ले गर्इ। मम्मी-पापा भी सारी बातें पीछे खड़े होकर सुन रहे थे। शैंकी के साथ मणि को खुश देखकर तीनों की आंखें ड़बड़बा आर्इ थी।
कहानी आपको कैसी लगी. जरुर बताईएगा !!!
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(बाल कहानी) मैं हूं मणि
ऐसी ही हूँ मैं…
सुबह का समय……! मैं यानि मणि, स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही हूँ पर मैंने जुराबें कहां रख दी मिल ही नही रही। बेल्ट भी देखने के लिए पूरी अलमारी छान मारी पर जब मम्मी मेरा स्कूल बैग ठीक करने लगी तब देखा उसी बैग में बेल्ट पड़ी थी। एक जुराब ना मिलने से अलमारी से दूसरा जोड़ा निकाल कर दिया। मेरा कमरा ऐसा हो रहा था मानो अभी-अभी भूकम्प आया हो। वैसे यह आज की बात नहीं है। मैं ऐसी ही हूँ। कमरा साफ-सुथरा रखना मेरे बस की बात नहीं………… वैसे मैं अभी तीसरी कक्षा में ही तो हूँ।
फिर पढ़ार्इ के अलावा मुझे पता है कितने काम होतें हैं….. गिनवाऊँ……… ओ.के. गिनवाती हूँ। पापा के पैरों पर खड़े होकर उन्हें दबाना, मम्मी की टेढ़ी-मेढ़ी चोटी बनाना, मटर छीलते समय उन्हें खाना ज्यादा डि़ब्बे में ड़ालना कम…….और….और…. पापा के हाथों व पैरों की उंगलियां खींचना, दादाजी की पीठ पर कंधे से खुजली करना…….ऊपर से पढ़ार्इ….पढ़ार्इ और पढ़ार्इ……….. है ना कितना काम। ओफ………..बस का हार्न बजा………… लगता है मेरी स्कूल बस मुझे लेने आ गर्इ है……….।
दोपहर के दो बजे मैं स्कूल से लौटती हूँ। उस समय मुझे अपना कमरा चमकता-दमकता मिलता है। यही हर रोज होता है।
हर सुबह मेरी तलाश, खोजबीन जारी रहती है और मम्मी मेरी हमेशा सहायता करती है क्योंकि ऐसी ही हूँ मैं…..। एक दिन मम्मी को कहीं जाना था तो मम्मी ने मुझे सुबह ही घर की डुप्लीकेट चाबी थमा दी। चाबी अक्सर मैं गुम कर देती हूँ इसलिए मम्मी मेरे गले में पहने काले धागे में चाबी ड़ाल देती हैं इससे चाबी गुम नहीं होती। मैं स्कूल से लौटी तो घर पर ताला लगा था। मैंने घर खोला और अंदर से बंद कर लिया। मम्मी मुझे हिदायत देकर गर्इ थी क्योंकि हमारे शहर में चोरियां बहुत हो रही थी।
हमेशा की तरह मैंने साफ-सुथरे घर को गंदा कर दिया। स्कूल बैग जमीन पर पटका। बेल्ट कहीं, जुराबें कहीं और कौन सी ड्रेस पहनूं के चक्कर में सारी अलमारी अस्त-व्यस्त कर दी। ड्रेस मैंने निकाली पर अलमारी बंद नहीं की क्योंकि ऐसी ही हूँ मैं।
फि्रज में से कोल्ड़ डि्रंक निकाला और ठाठ से लेट कर टीवी देखने लगी। बार-बार चैनल बदले जा रही थी। क्योंकि मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या देखूं और क्या न देखूं। फिर मम्मी की ड्रेसिंग टेबल वाली दराज खोल कर बैठ गर्इ कि मम्मी की सारी चूडि़यां, बिन्दी ठीक कर के लगाती हूँ। इसी बीच घर की लाइट चली गर्इ। मैं बोर होने लगी। मम्मी अभी आर्इ नही थी। मैंने सोचा कि घर बंद करके अपनी सहेली सुधा के यहां चली जाती हूँ। फिर मैंने घर ढंग से बंद किया और सुधा के घर गुडि़या-गुडि़या खेलने चली गर्इ ।
शाम हो गर्इ थी। मम्मी को सुधा की मम्मी से कुछ काम था इसलिए वो बाजार से सीधा ही सुधा के घर आ गर्इ। मुझे वहां खेलते देख उन्होंने गुस्सा किया कि पढ़ार्इ कब करूंगी और पापा भी बेचारे दफ्तर से आ गए होंगे और बाहर ही खड़े गुस्सा हो रहे होंगे।
मैं खेल भूल कर तुरन्त मम्मी के साथ घर चल पड़ी। घर गर्इ तो बाहर पापा और उनके दोस्त परेशान से खड़े थे। पापा ने बताया कि वह पाँच मिनट से बाहर खड़े हैं। घर का ताला तो बंद है पर अंदर से हल्की-हल्की आवाजें आ रही है। पीछे की खिड़की भी खुली है। वैसे पड़ोस के जैन साहब ने बताया कि उन्हाेंने पुलिस को फोन भी कर दिया है। पापा गुस्से से मुझे ही घूरे जा रहे थे। सभी अंदाजा लगा रहे थे कि पता नहीं, भीतर कितने लोग हैं।
पुलिस भी आ गर्इ। मम्मी ने घर की चाबी पुलिस वालों को दे दी। दोनों पुलिस वालों ने दरवाज़ा धीरे से खोला और धीरे-धीरे कमरे में प्रवेश किया। भीतर वाले कमरे से हल्की-हल्की रोशनी व आवाजें भी आ रही थी। एक पुलिस वाले ने भीतर से बाहर आकर यह रिर्पाट दी।
मेरी मम्मी भी पूरी तरह से घबरा गर्इ। पता नहीं क्या हो रहा होगा। तभी दूसरे वाला पुलिस मैन बाहर अपनी बन्दूक लेने आया तो उसने बताया कि भीतर का कमरा बिल्कुल फैला हुआ है। ऐसा लग रहा है मानो पूरी खोजबीन की हो। पांव तक रखने की जगह नहीं है। मैं तो बिल्कुल ही रूआंसी हो गर्इ। पापा-मम्मी दोनों मुझे गुस्से से देख रहे थे। आसपास के पड़ोसी भी इकटठे हो गए। चारों तरफ फुसफुसाहट हो रही थी।
तभी भीतर गए पुलिस वाले ने मेरे पापा को आवाज देकर भीतर बुलवाया। पिताजी ड़रते-ड़रते अन्दर गए फिर उन्होंने मेरी मम्मी और मुझे आवाज दी। हम दोनों भी अंदर गए। अन्दर जाकर देखा तो भीतर कोर्इ नहीं था। सिर्फ पापा और दो पुलिस वाले थे और हां कमरे में टीवी जरूर चल रहा था।
मुझे याद आया कि टीवी तो मैं चलता ही भूल गर्इ थी। बिजली चले जाने के कारण मुझे टीवी को बंद करना ध्यान ही नही रहा।
पुलिस वाले अंकल पापा को कह रहे थे कि वह तो इतना बिखरा कमरा देख कर हैरान थे और सोच रहे थे कि इतना तो चोर ही चोरी करते वक्त कमरा फैला कर जाते हैं।
पापा-मम्मी मेरी तरफ घूर कर देख रहे थे। मुझे एक तरफ तो खुशी थी घर में चोर नहीं है लेकिन पुलिस वालों के आगे मुझे बहुत बेइज्जती महसूस हुर्इ क्योंकि वह सारा कमरा तो मैंने ही फैलाया था…….। पुलिस अंकल मुझ से पूछने लगे कि क्या मैंने ही यह कमरा फैलाया है।
मैं जोर से रो पड़ी और कहने लगी कि प्लीज़ अंकल आप मेरी शिकायत किसी से मत करना। सारी गलती मेरी थी। मैं ऐसी ही हूँ। स्कूल से आकर सारा कमरा फैला देती हूँ। फिर टीवी देखते-देखते लाइट चली गर्इ। मैंने खिड़की खोल दी पर…. घर पर बोर हो रही थी तो मैं बिना खिड़की, टीवी बंद किए ही सुधा के घर खेलने चली गर्इ। पर बाहर से ताला जरूर लगा गर्इ।
पुलिस वाले अंकल ने बताया कि फिर शाम हुर्इ, अंधेरा हुआ तो टीवी की हल्की-हल्की आवाज और कम ज्यादा होती रोशनी से ऐसे लगा कि घर पर कोर्इ है और खुली खिड़की देख कर तो मन का शक पक्का हो चला। मैं रो रही थी। पर मुझे सबक मिला चुका था। मैंने मम्मी-पापा और पुलिस अंकल से वायदा लिया कि मैं आगे से ऐसा नहीं करूंगी। कमरा ठीक रखूंगी। दो-तीन दिन बाद फिर वही रोज मर्रा की तरह कमरा फैलाना शुरू हो गया क्योंकि…….. ऐसी ही हूँ मैं…….. है ना!
कैसी लगी आपको ये कहानी जरुर बताईगा
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अजय का सपना जब कोई बच्चा नया नया पढना सीखता है तो उसे कहानियां पढने का बहुत शौक होता है पर ज्यादा मात्राओं की समझ न होने के कारण वो पढ नही पाता इसलिए मैने कुछ अलग अलग प्रयास किए ताकि वो बच्चे जिन्होने हाल ही मे पढना सीखा है और मात्राए लगाना नही जानते बस आ की मात्रा ही आती है ये कहानी उन बच्चों के लिए है देखिए कैसे फटाफट पढ लेंगें वो ये मजेदार बाल कहानी
अजय का सपना
(वह बच्चें जिन्होनें अभी सिर्फ आ की मात्रा लगाना सीखा है वे यह बाल कथा पढ़ सकते हैं क्योंकि इसमें सिर्फ आ की मात्रा का प्रयोग किया गया है।)
अजय चार साल का नटखट बालक था। अमन उसका बड़ा भार्इ था। अमन समझदार था। वह समय पर पाठशाला जाता। अमन पाठ याद करता पर अजय का जब मन करता तब जाता जब मन ना करता तब बहाना बना कर घर पर ठहर जाता। वह पापा का लाड़ला था। अमन सब समझता था। वह पाठशाला जाता-जाता यह गाना गाता जाता कल बनाना नया बहाना।
एक बार अचानक आवश्यक काम आ गया। माँ तथा पापा कार पर शहर गए। अजय साथ जाना चाह रहा था पर पापा दरवाजा बंद कर बाहर ताला लगा गए। बस, घर पर अजय तथा अमन रह गए।
अमन छत पर समाचार पत्र पढ़ रहा था। उस पर बदमाश तहलका लाल का नाम छपा था। वह तलवार वाला खतरनाक बदमाश था। अजय उसका नाम जानकर ड़र गया। अचानक आसमान पर काला बादल छा गया। घर का दरवाजा खट-खट बज उठा। अजय छत पर ड़रकर खड़ा गाल पर हाथ रखकर पापा-पापा रट रहा था।
यकायक वह बदमाश छत पर आ टपका। उसका रंग एकदम काला था। हाथ पर लाल कपड़ा बंधा था। वह तलवार पकड़ अजय पर लपका तथा हंसा। जब बालक पाठशाला ना जाता, तब हम आता उसका कान काट का जाता, हा! हा! हा!
अजय अचानक ड़र कर मचल गया। वह जाग गया। वाह! वह सब सपना था। अमन पाठशाला जाकर घर आ गया था तथा खाना खा रहा था। बाहर आसमान साफ था। वह माँ, पापा, अजय आवाज लगाता भागा तथा अपना सारा सपना बताया।
अब वह कल पाठशाला जाना चाह रहा था। अमन खाना खाता, मजाक बनाता कह उठा, हाँ……..हाँ कल बनाना नया बहाना पर अजय कह उठा कल बहाना ना बनाऊँगा झटपट उठकर पाठशाला जाऊँगा तथा अपना कान पकड़ कर हँस पड़ा।
अजय का सपना बहुत साल पहले राजस्थान पत्रिका जयपुर से भी प्रकाशित हुई थी. आप बताओ कि आपको कहानी कैसी लगी !!!
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बाल कहानी 100रभ की 6तरी
( अंको को शब्दों के साथ जोड़कर कहानी का आनन्द लें)
2पहर के समय बर7 शुरू हो गर्इ। स्कूल से लौटते समय 100रभ ने अपनी कमीज की आस् 3 ऊपर कर ली थी। उसने पिताजी को बहुत बार 6तरी लाने को कहा था पर वो टाल देते थे। आज उसका जन्मदिन है पर उसकी 100तेली माँ ने उसे अभी तक बधार्इ भी नही दी। जब उसने स्कूल में अपने 2स्तों को यह बात बतार्इ तो वह उल्टे ही 100रभ के कान भरने लगे कि 100तेली माँ के आ4-वि4 अच्छे नही होते। वह हमेशा बच्चों में 2ष ही निकालती हैं और अत्या4 करती हैं। कर्इ बार तो उन्हें 6ड़ी से भी पीटती है। कर्इ बार तो बच्चे इतने ला4 हो जाते है कि घर से भागने की 9बत ही आ जाती है।
स्कूल की छुटटी के बाद वह सोचता हुआ जा रहा था कि 100तेली माँ से उसकी कभी अनबन भी नही हुर्इ पर आज उन्होनें बधार्इ क्यों नही दी। क्या वो भी उसे घर से निकाल देंगीं? लगता है, अब तो पिताजी भी उसे प्यार नही करते। 6तरी भी शायद इसीलिए नही लाकर दे रहे हैं। इसी सोच में उसे रास्ते में 1ता दीदी मिली। वो हमेशा वे2 के बारे में अच्छी-अच्छी बातें बताया करती थी। उन्होनें उसके घर का समा4 जाना और 2राहें पर से अपने घर चली गर्इ। वो 6मियाँ राम जी की 2ती थी। उसके और 100रभ के पिताजी बहुत अच्छे 2स्त थे। 1ता दीदी के पिताजी 9सेना में 9करी करते थे और 100रभ के पिता सवार्इ मानसिंह में रोगियों का उप4 करते।
यही सोचते-सोचते उसका घर आ गया और उसने ड़रते-ड़रते दरवाजे़ पर 10तक दी पर दरवाज़ें खुला था। कमरे में किसी की आहट ना पाकर वो चुपचाप अपने कमरे में चला गया। उसकी हैरानी की कोर्इ सीमा नही रही जब उसने अपनी 4पार्इ पर 100गात रखी देखी। 100गात खोलने पर उसमें सुन्दर सी 6तरी मिली। जैसे ही उसने पलट कर देखा तो उसकी माताजी और पिताजी जन्मदिन की बधार्इ ताली बजा कर दे रहे थे। उस समय तीनों की आँखें नम थी।
आज का दिन 100रभ के लिए ढ़ेरो खुशियाँ लेकर आया था। उसे अपनी माँ का प्यार मिला। माँ ने बताया कि शाम को तोहफा देकर चौंका देना चाहते थे। इसीलिए सुबह बधार्इ नही दी। अब उसके मन में कोर्इ शंका नही थी कि मम्मी पापा उसे बहुत प्यार करतें हैं। अपनी नर्इ 6तरी लेकर वो 2स्तों को दिखाने बाहर भागा। बाहर धूप निकल आर्इ थी और सुन्दर सा इन्द्रधनुष सुनहरी 6ठा बिखेर रहा था।
रोचक बाल कहानी 100रभ की छतरी
राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित हुई कहानी
आपको कैसी लगी … जरुर जरुर बताईगा
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