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1. तो क्या हुआ

Satire … हास्य व्यंग्य — तो क्या हुआ (कुछ कतरन)

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2. हास्य व्यंग्य

हास्य व्यंग्य सुनने मे भले ही एक्सीडेंट शब्द अच्छा न लगे पर व्यंग्य पढ कर हम सभी चाहेंगें  कि हमारा भी  ऐसा ऐसा ही……. !!!! वैसे हास्य- व्यंग्य हमेशा अपनी और आकर्षित करते हैं और कुछ पल को ही सही दिल को रिलेक्स कर जाते है… ( कुछ कतरन) हास्य व्यंग्य  

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3. चलो स्कीम बनाए

चलो स्कीम बनाए ये व्यंग्य दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ. बाजार में त्योहार आते नही कि स्कीमें शुरु हो जाती है. फलां के साथ फलां फ्री आदि  अब शापिंग की शौकीन महिलाओ को स्कीम के तहत कुछ भी फ्री का मिले तो खुश होना स्वाभाविक ही है पर स्कीम का अंत होता क्या है बेशक […]

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4. ये हो क्या रहा है

ये हो क्या रहा है   नामक व्यंग्य दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ. इसमें समाज में चल रहे कुछ मुद्दों के बारे में व्यंग्य किया है कि आखिर ये हो क्या रहा है . ये हो क्या रहा है आपको कैसा लगा जरुर बताईएगा !!!  

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5. उधार का सुख

उधार का सुख उधार का सुख कैसे हो सकता है जबकि सभी लोग उधार के नाम से ही कतराते हैं पर मेरी इस पात्रा को उधार के नाम से बेहद खुशी मिलती है पर कैसे यही जानने के लिए पढना पडेगा उधार का सुख उधार का सुख नामक व्यंग्य दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ.

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6. व्यंग्य बिजली जाने का सुख

व्यंग्य बिजली जाने का सुख

http://radioplaybackindia.blogspot.in/…/bijli-jane-ka-sukh-… लीजिए सुनिए … मेरा लिखा व्यंग्य मेरी ही आवाज मे … व्यंग्य है .. बिजली जाने का सुख ..

बिजली जाने का सुख …

 व्यंग्य बिजली जाने का सुख

 हैरान होने की कोई जरुरत नही, बिजली कटस को देखते हुए मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि बिजली जाने के तो सुख ही सुख है.सबसे पहले तो समाज की तरक्की मे हमारा योगदान है भले ही वो अर्थ आवर ही क्यो न हो. और  बिजली नही तो बिल भी कम आएगा और उन पैसों से ढेर सारी शापिंग.

वृद्ध् लोग बिजली न होने पर हाथ का पखां करेगें तो कन्धों के जोडो की अकडन खुल जाएगी. घरो मे चोरी कम होगी कैसे ? अरे भई, बिजली ना होने की वजह से नींद ही नही आएगी जब सोएगें नही तो चोर आएगा कैसे..

 बिजली ना रहने से सास बहू के आपसी झगडे कम होगें दोनो बजाय एक दूसरे को कोसने के बिजली विभाग को कोसेगीं हैं इससे मन की भडास भी निकल जाएगी और मन को अभूतपूर्व शांति भी मिलेगी. बिजली न होने से दोस्ती भी हो जाएगी.

अब बिजली ना होने पर आप घर से बाहर निकलेगे अडोस पडोस मे पूछेगे लाईट के बारे में. फिर धीरे धीरे  जान पहचान होगी  और दोस्ती हो जाएगी. बिजली न होने की वजह से आप श्रृंगार  और वीर रस के  कवि या लेखक बन सकते हैं. ऐसे लेख निकलेगें आपकी कलम से कि बस पूछिए ही मत.और तो और आप जोशीले भी बन सकते है बिजली घर मे ताला लगाना, तोड फोड , जलूस की अगवाई में महारथ हासिल हो सकती है.बातें तो और भी है पर हमारे यहाँ 3घंटे से लाईट गई हुई है और अब इंवरटर में लाल लाईट जल गई है.

बिजली विभाग का फोन नो रिप्लाई  आ रहा है गुस्से मे मेरा बीपी बढ रहा है डाक्टर को फोन किया तो वो बोले तुरंत आ जाओ. अब ओटो का खर्चा, डाक्टर की फीस ,दवाईयो का खर्चा सभी के फायदे ही फायदे हैं और कितने सुख गिनवाऊँ बिजली जाने के.

 

Monica Gupta

Monica Gupta

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7. जब कार चलाना सीखा

car drive photo

 

जब कार चलाना सीखा

मुसीबत मोल ली मैने ..

जी हां … आजकल समय ही ऐसा चल रहा है.चारो तरफ टेंशन,परेशानी ही दिखाई देती रहती है. आमतौर पर हम इन तनाव या मुसीबत से छुटकारा पाना चाह्ते है पर दूसरी तरफ एक उदाहरण मै हू जोकि मुसीबत को खुद ही न्यौता दे आई और वो भी पूरे जोश के साथ पर अब कहने को कुछ नही बचा. बस चारो तरफ गहन अंधकार ही अंधकार है. खैर, इससे पहले आप माथे पर बल डाल कर ज्यादा सोचने पर मजबूर हो जाए मै आपको दुख भरी दास्तान सुनाती हूं.

बात ज्यादा पुरानी नही है बस पिछ्ले महीने ही ही है.एक दिन बाजार जाते समय मुझे एक सहेली मिली वैसे स्कूल टाईम मे वो नालायक नम्बर वन थी.पर पता नही आजकल उसे क्या हो गया है इतनी स्मार्ट इतनी स्मार्ट हो गई है कि बस पूछो ही मत.बाल कटवा लिए है धूप का चश्मा पहनने लगी है और सबसे बडी बात की कार चलाती है. बस यही मेरी दुखती रग है.

असल मे, मुझे कार चलानी नही आती. आज के समय मे कार ना चलाना आना हैरानी का विषय ना बने इसलिए मैने उसी समय घर आकर घोषणा कर दी कि कल से मै गाडी चलाना सीख रही  हूं. जो चाहे सो हो. छोटे बेटे ने तुरंत अग़ूंठा दिखा कर मेरा समर्थन किया जबकि 90% परिवार जनो की राय थी कि रहने दो क्या फायदा.

पर मै एक बार जिद कर जाती हू तो फिर अपने आप की भी नही सुनती बडे स्टाईल से डायलाग बोल कर इतराने लगी और कहा कि ठान लिया तो बस ठान लिया और अगले ही दिन ब्यूटी पार्लर मे जाकर छोटे छोटे बाल कटवा लिए और गोगल भी खरीद लिए. अब  भई स्टाईल भी तो मारना जरुरी होता है .जल्दी ही खोज शुरु हुई कार सीखाने वाले की और 15 दिन मे मै फराटे से  कार चलाना सीख गई हालाकि दो चार बार बहुत बुरी तरह बची भी हूं.अब सारी बाते क्या बतानी. आप खुद भी समझदार है….  है ना.

अब आप सोच रहे होंगे कि भई इसमे दुख भरी बात कहा है तो वही बताने तो जा रही हू.कि मुसीबत मोल ली मैने. छोटे छोटे कामो के लिए अब सब मेरा ही मुंह देखते है कि ग़ाडी भी है और ड्राईवर भी.चाहे बाजार से आधा  किलो आलू लाने हो कपडे प्रैस करवाने हो या राशन का सामान हो लाना हो .सब मेरे सिर पर ही आ गया कि कार है ना . पहले दुकान वाले  सामान  आदमी के हाथो भिजवा देते थे पर अब उनका एक ही जवाब होता है कि कार है ना आप ही आ जाओ. आदमी नही ना है. दुकान बंद करके आना पडेगा.वगैरहा वगैरहा.

घर पर किसी के जूते मे मोची से जरा सी कील ही ठुकवानी हो तो भी कार है ना. और तो और जो मेहमान सालों से हमारे यहां नही आए थे जबसे उन्हे पता चला कि मैने कार सीख ली है वो आने को तैयार है.हफ्ते दस दिन का कार्यक्रम बना कर आ रहे है. पहले उन्हे रेलवे स्टेशन लेने जाओ फिर आवभगत,जायकेदार व्यंजन बनाओ,सेवा करो और  फिर अलग अलग जगह सुबह से शाम तक  दिल्ली दर्शन  करवाओ शापिंग करवाओ और फिर रात को लजीज व्यंजन से स्वागत करो ताकि वो नाराज ना हो जाए.

पहले तो मात्र घर ही सम्भालती थी पर अब जबसे कार चलाना सीखा है बस मानो मुसीबत ही मोल ले ली है मैने.अब तो दोहरी भूमिका हो गई है.घर पर सब निश्चिंत होकर बैठे है और सभी खुश है कि अब तो दिक्कत की कोई बात ही नही है.पर मै सिर पकड कर बैठी हूं कि क्यो मैने कार चलाना सीखा और अपने पैरो पर खुद कुल्हाडी मार ली.बेटे ने जो उस दिन अगूंठा दिखा कर मेरी बात का समर्थन किया था  मुझे वो थम्स अप की बजाय  ठेंगा लग रहा है. कुछ भी कहो  इसमे अब कोई मेरी मदद नही कर सकता क्योकि यह मुसीबत खुशी खुशी मैने ही मोल ली थी… अब तो इसे भुगतना तो पडेगा ही पडेगा….

कैसा लगा आपको ये व्यग्य … जरुर बताईएगा :)

 

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8. आई बरसात तो

आई बरसात तो …

आहा से आह तक का सफर

इन दिनो बरसात की खबर पढ कर या सुनकर मन मायूस हो जाता क्योकि हमारे शहर मे बरसात हो ही नही रही थी. ऐसी बात नही है कि यहां बादल नही आते. बादल गरजने के साथ साथ् बिजली भी खूब चमकाते  पर वो कहते है ना जो गरजते है वो बरसते नही बस …. ऐसा ही कुछ हो रहा था. बहुत मन था कि बरसात आए तो आनंद लें. गर्मा गर्म अदरक और इलाइची की चाय के साथ हलवा और पकौडे बनाए. बच्चो के साथ बारिश मे भीगे और कागज की नाव चलाए. पर खुशी से  आहा करने का मौका ही नही मिल रहा था. यही सोचते सोचते मैं अखबार के पन्ने पलटने लगी. तभी अचानक आखो मे आगे अंधेरा सा छा गया. अरे! चिंता मत करे. कोई चक्कर वक्कर नही आया मुझे पर ऐसा लग रहा था कि जो सूर्य महाराज पूरी तेजी से भरी दोपहरी मे चमक रहे थे अचानक उनकी चमक हलकी पड  गई.बाहर देखा तो  आसमान मे बहुत काला बादल  था. आज तो यकीनन बरसना ही चाहिए. मै सोच ही रही थी कि अचानक बूदाबांदी शुरु हो गई और मन मयूर नाच उठा.

इतने मे बच्चे भी वापिस लौट आए और कपडे बदल कर हाथ मे छतरी और बरसाती पहन कर कागज की नाव बना कर  बरसात  का आनंद उठाने को तैयार हो गए. उधर मेरी भी सहेलियाँ आ गई और हमने बरसात का खूब  मजा उठाया. प्रकृति एक दम साफ साफ धुली धुली लग रही थी.गमलो मे लगे पौधे हवा के साथ हिलते हुए ऐसे लग रहे थे मानो अपनी खुशी का इजहार कर रहे हों.  फेसबुक पर भी बरसात की सूचना दे दी गई और लाईक और कमेंट का अम्बार लग गया.. और तो और दो तीन निकट  दोस्तो का तो बधाई के लिए फोन भी आ गया कि आखिरकार भगवान ने आपकी सुन ली. सारे चेहरे खिले खिले थे.ऐसा लग रहा था मानो खुशी बरस रही थी.  माहौल खुशनुमा हो चला था. अचानक तापमान इतना कम हो गया कि पंखा भी एक नम्बर पर करना पडा. काफी देर तक भीगने के बाद कपडे बदल कर् बच्चे नेट पर काम करने लगे और सहेलियो ने भी विदा ली.

तभी अचानक बहुत तेज बिजली चमकी और मेरी आखं खुली. अरे! ये सपना था. बाहर आकर देखा तो सचमुच मूसलाधार  बरसात हो रही थी. बेशक मन खुश हुआ.पर इतनी तेज बरसात देख कर चिंता भी हो गई. तभी बिजली चली गई. चिंता इस बात की थी कि अभी बच्चे भी नही वापिस आए थे. फोन करने लगी तो वो भी डेड हो गया था. मोबाईल का नेटवर्क तो वैसे ही दुखी कर रहा था. रेंज ही नही होती कभी इसकी. खैर! सोचा कि चलो इतने पकौडो की तैयारी कर लूं रसोई मे गई तो देखा कि रसोई की नाली मे पानी जाने की बजाय बाहर आ रहा था यानि सीवर ओवरफ्लो कर रहा था. बाहर सडक पर देखा तो वो पूरी भर गई थी और ऐसा लग रहा था कि पानी किसी भी क्षण घर मे आ सकता  है  और देखते ही देखते पानी अंदर आना शुरु हो गया. असल मे बाहर सडक को ऊंचा  बनाया जा रहा है शायद इसी लिए .. !!!

वो क्षण किसी भंयकर सपने से कम नही था. मैने तीन चार पर अपने को चिकोटी काटी कि यह सब सपना ही हो.पर आह! अफसोस यह सपना नही हकीकत था. ना बिजली ना फोन ना मोबाईल और ऊपर से घर मे आता पानी. मेरा सारा शौक हवा हो गया.

बस भगवान से  सच्चे दिल से एक ही प्रार्थना कर रही हूं  कि बरसात  को तुरंत रोक दो मै 11 रुपए का प्रशाद चढाऊगी.पर भगवान तक  मेरी अर्जी जब तक  लगी  तब तक काफी देर हो चुकी थी. बरसात के लिए खुशी की आहा अब तक दुख भरी  आह  मे बदल चुकी थी. सरकार, प्रशासन और अडोस- पडोस को कोसते हुए नम हुई आखों से सारे काम भूल कर झाडू, कटका लिए बरसात के रुकने की इंतजार कर रही हूं !!!

आई बरसात तो … बरसात ने दिल तोड दिया

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य जरुर बताईएगा :)

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9. संकल्प नए वर्ष का

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संकल्प नए वर्ष का ( व्यंग्य )

उफ्फ …!!! आखिरकार नए साल मे मैने क्या संकल्प लेना है सोच ही लिया .अब आपसे क्या छिपाना …हर साल जब भी नवम्बर समाप्त होने लगता और दिसम्बर जी का आगमन होता. मन मे अजीब सी बैचेनी करवट लेने लगती कि नए साल मे नया क्या क्या करना है और क्या क्या नही करना है.बस इसी उधेड बुन मे पूरा समय निकल जाता पर भगवान का लाख लाख शुक्र है कि इस साल यह नौबत ही नही आई और समय से पहले ही डिसाईड हो गया.

पता है, पिछ्ले साल मैने यह सोचा था कि सच बोलना शुरु कर दूगी. अरे नही.. नही … आप गलत समझ गए.असल मै, वैसे मै, झूठ नही बोलती पर ना जाने क्यू टीवी पर सच का सामना देख कर डर सी गई थी इसलिए बोल्ड होकर यह निर्णय लिया कि यह आईडिया ड्राप.फिर सोचा था कि कुछ भी हो जाए पतली हो कर दिखाऊगी पर पर पर .. सर्दियो के महीने मे ऐसा विचार मन मे लाना जरा मुश्किल हो जाता है.सरदी की गुनगुनी धूप हो,रजाई हो और गर्मा गर्म पराठे हो और उस तैरता और पिधलता मखन्न.मन भी पिधलना शुरु हो जाता अब ऐसे मे भला खाने पर कैसे ब्रेक लग सकती है.चलो इसे भी सिरे से नकार कर यह सोचा कि सुबह शाम की सैर ही शुरु कर दी जाए. इस पर तुरत अमल करना भी शुरु कर दिया था पर दो ही दिन मे यह मिशन फेल होता सा प्रतीत हुआ. असल मे , ऊबड खाबड सडके, सडको पर मस्ती मे धूमते आवारा बैल,और गंदगी के ढेर के साथ साथ सीवर के ढक्कन गायब.अब बताईए ऐसे मे हाथ पैर तुडवाने से अच्छा है कि कुछ और सोचा जाए.

वैसे सोचा तो मैने यह भी था कि नए साल मे किसी पर गुस्सा नही करुगी.चेहरे पर स्माईल रखूगीं. पिछ्ले साल 31 की रात सबसे यही कह कर सोई कि सभी 1 जनवरी को सुबह सुबह मंदिर चलेगे .मै तो सुबह सुबह तैयार हो गई पर कोई सुबह उठने को तैयार ही नही था. मुस्कुराते मुस्कुराते उठाती रही पर रात को देर से सोने के चक्कर मे सभी गहरी नींद मे थे. इतने मे काम वाली बाई आ गई. उसे पता नही क्या हुआ. बर्तनो को जोर जोर से शोर करते हुए धोने लगी .एक तो देर से आई ऊपर से मुहं बना रखा था इसने. मैने खुद को संयत किया कि मोनिका स्माईल … कंट्रोल कर… कहती हुई ताजा हवा लेने के लिए खिडकी पर जा खडी हुई कि अचानक मेरी नजर पडोसियो की नई चमचमाती कार पर पडी शायद कल ही के लर आए थे.बस आगे आपको बताने की जरुर नही कि ….. !!!!

इस साल भी यही विचार चल रहा था कि नए साल मे क्या संकल्प लिया जाए कि पूरा भी किया जा सके. घर के एक बडे बुजुर्ग ने सुझाया कि हम लोगो को तीर्थ यात्रा करवा दिया करो हर चार महीने मे एक बार. पुण्य मिलेगा.बात जमी नही और मै बच्चो के कमरे मे गई तो बच्चे कहते कि छोडो मम्मी… हर महीने हमे पिक्चर और पिकनिक पर ले जाया करो.काम वाली बाई भी कहा पीछे रहने वाली थी बोली कि मेरी पगार बढा दो और छुट्टी भी बढा दो. बाहर निकली तो ये बोले कि तुम फुलके पतले नही बनाती जरा श्रीमति ऋतु से सीख लो इतने पतले,मुलायम और गोल गोल चपाती बनाती है और कृष्णामूति से डोसा बनाना भी सीख लो … खश्बू से ही मुहं मे पानी आ जाता है.वो बात कर ही रहे थे कि इतने मे मेरी सहेली मणि का फोन आ गया उसने राय दी कि दो चार किट्टी पार्टी ज्वायन कर ले. थोडी सी चालाक बन बहुत भोली है तू.!!! अगले साल ही तुझे सोसाईटी की सैकट्ररी ना बनवा दिया तो मेरा नाम मणि नही!! मैने कोई बहाना कर के तुरंत फोन रख दिया.उफ्फ !!!किस की सुनू किस की ना सुनूं… देखा कितना टेंशन था.

smiley photo

अब आपको भी टेंशन हो रही होगी कि आखिर इस साल मैने क्या सकंल्प लिया है. तो सुनिए … पिछ्ले दो तीन सालो के अनुभव को देखते हुए… बहुत सोच विचार के मै इस नतीजे पर पहुंची हूँ कि चाहे कुछ भी जाए बस बहुत हुआ. अब और नही इसलिए इस साल … इस साल … इस साल … नए साल के लिए कोई सकंल्प ही नही लूगी.इसलिए मै खुश हू और बहुत ही खुश हूं ..

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य जरुर बताईगा :)

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10. उफ ये मुस्कुराहट

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उफ ये मुस्कुराहट!!!! (व्यंग्य)

इस तनाव भरे माहौल मे अगर कोई कहे कि मुस्कुराओ तो बहुत ही अजीब सा लगता है वैसे ऐसा मेरा मानना है पर पिछ्ले दो चार दिन से कुछ ऐसा हुआ कि मुझे अपने विचार बदलने पडे और मै भी हंसने मुस्कुराने के मैदान मे कूद पडी. वैसे आपको एक सच बात बताऊ कि हँसने खिलखिलाने का शौक तो मुझे बचपन से ही था पर बडे होते होते कुछ ऐसा होता चला गया कि हँसी भी कही दब कर रह गई. दो दिन पहले मेरी सहेली मणि आई उसने बताया कि मुस्कुराहट तो अनमोल गहना है इसे हमेशा धारण करना  चाहिए. वही बाजार मे खरीददारी करते एक अन्य दोस्त ने बताया कि जब 2 सैंकिंड की मुस्कान से फोटो अच्छी आ सकती है तो मुस्कुराने से जिंदगी भी तो अच्छी हो सकती है कि नही. पता नही क्यो पर मुझे बात जम गई. और बस सोच लिया कि अब जो हो सो हो. हमेशा हसंना और मुस्कुराना ही है और अपनी अलग पहचान बनानी है.

अगली सुबह मे बहुत अच्छे मूड मे सो कर उठी और सैर को निकल पडी. एक दम शांत माहौल मे मैने एक पेड चुना और वहाँ हाथ ऊपर करके ठहाका लगा कर जोर जोर से हंसने लगी. इतना ही नही बीच बीच मे ताली भी बजा रही थी इस बात से बिलकुल बेखबर कि सामने ही एक मोटी लडकी व्यायाम करने के लिए रस्सी कूद रही थी और वो गिर गई थी. पता तब चला जब शायद उसकी मम्मी आग्नेय नेत्रो से मुझे धूरने लगी और उसके पास खडा आज्ञाकारी कुत्ता भी मुझ पर बेहिसाब भौकने लगा. इससे पहले मै अपनी सफाई मे कुछ कहती उनकी लडकी और जोर जोर से रोने लगी और मैने चुपचाप खिसकने मे ही भलाई समझी. उफ!! मैने ठंडी सासं ली और धडकते दिल के साथ  घर लौट आई.

घ्रर लौटी तो हमारी पडोसन मिक्सी मांगने आई हुई थी. पर पता नही क्यो आज उसे देखकर मुझे हसीं आ गई. असल मे, वो क्या है ना कि वो डकारे बहुत लेती है. पहले तो मै कुछ नही कहती थी पर जब से हंसना अनमोल गहना है और जिंदगी हंसने से बेहतर बनती है तो सोचा कि आज हंस ही लूं इतने  दिनो बाद खिलखिलाकर हँसी तो शायद उसे बुरा लगा. उसने हसंने का कारण पूछा  तो मैने भी हंसते हुए बता दिया कि उसकी डकार सुनकर मुझे बहुत हंसी आती है. इस पर वो बहुत नाराज हुई और बाहर चली गई. मै एकदम चुप हो गई. इतने मे वो फिर आई और गुस्से मे वहाँ रखी मिक्सी ले गई.मै चुपचाप उसे देखती रह गई.उफ ये मुस्कुराहट!!!

अगले दिन किसी कवि सम्मेलन मे जाना था. वहां एक महोदय बहुत देर से कविता पे कविता सुनाए चले जा रहे थे. मेरे साथ बैठी महिला मुहं पर रुमाल रख कर धीरे धीरे  हसें जा रही थी. मैनें इधर उधर नजरे घुमा कर देखा तो कोई उबासी ले रहा था तो कोई सिर खुजला रहा था तो कोई मोबाईल पर मैसेज भेजने मे जुटा था यानि कुल मिलाकर माहौल मे सन्नाटा था. मैने कनखियो से एक दो बार उस महिला को  देखा तो  भीतर ही भीतर वो इतनी हंस रही थी इतनी हंस रही थी कि उसके आंसू निकल रहे थे.बस फिर क्या था. बोर तो मै भी हो रही थी पर उसे देख कर हंसने वाली बात याद आ गई और उसे देख कर मै जोर से खिलखिला कर हंस पडी. उसके बाद आपको ज्यादा बताने की जरुरत नही क्योकि आप सभी बहुत समझदार है. मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और मै चुपचाप बाहर आ गई.उफ!! बहुत महंगी पडी ये मुस्कुराहट.

समझ नही आ रहा था कि आखिर गलती हो कहाँ रही है.खैर रुआसी होकर घर लौट आई. शाम को बेटा हंसता मुस्कुराता घर आया और उसने मुझे उसका नया पासपोर्ट दिखाया. मै खुशी खुशी देखने लगी पर पासपोर्ट की फोटू मे उसकी मुस्कान ही गायब थी. मेरे पूछ्ने पर उसने बताया कि आजकल पासपोर्ट पर फोटो खिचवाते समय  चेहरे पर कोई भाव नही आना चाहिए…!! यही नियम है.

मुझे लगा कि मेरे लिए भी यही ठीक होगा और फिर मैनें अपने को पहले की तरह बनाने मे ही भलाई समझी और चुपचाप बिना मुस्कुराए काम मे जुट गई….

कैसा लगा ??? जरुर बताईगा??

ये व्यंग्य दैनिक भास्कर की मधुरिमा पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.

 

 

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11. दौरा बनाम दौरा

दौरा बनाम दौरा  ….

cartoon- result monica gupta

 

दौरा बनाम दौरा

आज अचानक सुबह सुबह  नेता जी ने घोषणा कर दी कि अभी विदेश दौरे पर जाने की बजाय वो सीधा  तिहाड के दौरे पर जाएगे क्योकि भारी अव्यवस्थाओ के चलते वहां देखना भी बहुत जरुरी है. आनन फानन में सायरन बजाती हुई गाडियो का काफिला अगले ही पल तिहाड के भीतर था.

काजू और बादाम खाते हुए नेता जी ने बहुत ध्यान से सभी बातो का मुआयना करना शुरु किया.सबसे पहले गेट पर खडे  संतरी को बहुत प्यार से देखा और उसकी पीठ पर थपकी दी. फिर पूरा  मुआयना किया कि कैसे कैदी सुबह उठ कर दिनचर्या अपनाते है और उन्हे किन किन बातो की कमी लगती होगी. सबसे पहले तो सैर करने के लिए जगह तैयार करवाने के आदेश दिए.ताकि ताजी  हवा का आनंद ले सकें. कुछ कमरो को वीआईपी सैल बनाने की धोषणा की कि जब कोई बडा नामी गिरामी बीमार नेता आए तो उसे किसी प्रकार की दिक्कत का सामना ना करना पडे.

खाने मे भी अच्छे कुक रखने के आदेश दिए ताकि कोई कैदी खाकर बीमार ना पडे क्योकि मीडिया मे एक बार खबर आ जाए तो बहुत किरकिरी हो जाती है. फिर बात आई शौचालयो की. अच्छे स्वास्थ्य के लिए साफ सुथरे बाथरुम निंतांत आवश्यक हैं इसलिए ज्यादा शौचालय बनाने के भी आदेश दे दिए गए औरयह हिदायत भी दी गई कि सभी सफाई  कर्मचारी  24 घंटे डयूटी पर ही तैनात रहें.

हर रोज कुछ ना कुछ क्रियात्मक होता रहे इसलिए मनोरंजन के लिए भी आदेश दिए गए ताकि दुखी कैदियो  का ध्यान सुसाईड करने पर ना जाए और उसमे जीने की नई आशा का संचार होता रहे.छोटा फ्रिज,गद्दा और छोटा रेडियो या छोटा टीवी भी सभी कमरो मे लगे इसका भी ध्यान रखना बहुत जरुरी है और और नेता जी बोलते जा रहे थे और उनका सैक्रेटरी लिखे जा रहा था. तभी किसी ने पीछे आकर कहां कि आपके जाने का समय हो गया है. उन्होने तुरंत गाडी निकालने के आदेश दिए ताकि कही विदेश जाने वाली  फ्लाईट मिस ना हो जाए. और अगले दौरे का भी दिन तथा समय  निश्चित कर लिया ताकि जिन कामो के आदेश दे दिए है वो लागू हुए है या नही.

तभी उन्हे ऐसा लगा कि कोई उन्हे झंकोर रहा है. अचानक वो उचक कर उठ बैठे. हवलदार उन्हे उठा रहा था कि इतनी देर से  क्या बडबडाए जा रहे हो… वो नींद से जागे… अरे!!! वो तो खुद कैदी हैं.छोटा सा कोठरीनुमा कमरा, पुराना सा मटका,थाली कटोरी,चम्मच, और मटमैली सी चादर मानो उन्हे चिढाती हुई हंस  रही थी.उफ!!! कहां तो  नेता जी दौरा करने आए थे और ये क्या …!!!  अचानक नेता जी को एक बार फिर  दौरा पडा और एक लंबी सांस लेते हुए वो एक तरफ लुढक गए…..पीछे संगीत चल रहा था …ए मालिक तेरे बंदे हम …ऐसे हैं हमारे कर्म …!!!!!

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य… जरुर बताईएगा :)

 

 

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12. शौक,शोक,शेक और शक

dog photo

 

Satire …   व्यंग्य …. शौक,शोक,शेक और शक

असल मे, वो क्या है ना हम चाहे कुछ भी हो पर स्टेट्स सिंबल बन चुका है कुत्ता पालना.. जिसे हम सभ्य भाषा मे पप्पी,डागी या मेरा बच्चा के नाम से पुकारते हैं. अभी परसो ही जब मुझे प्रमोशन मिली और मैने सखी को यह खुशखबरी दी कि अब तो मुझे गाडी भी मिल जाएगी तो लम्बू जी यानि अमिताभ जी के स्टाईल मे कमर पर हाथ रख कर वो बोली वो सब तो ठीक है हंय….   पर क्या कुत्ता है तुम्हारे पास. बस इतना अपमान मै सहन नही कर सकी और ठान ली कि चाहे कुछ भी हो जाए कुत्ते ( ओ क्षमा करे) डागी को तो खरीद कर ही रहूगी.चाहे जो हो सो हो ..भई आखिर स्टेट्स सिंबल का सवाल जो ठहरा. आखिर वो अपने को समझती क्या है . हम भी कुत्ते वाले क्यो नही बन सकते.

यही सब विचारते भुनभुनाते घर पहुंच कर सोचा था कि किसी ना किसी पर गुस्सा जरुर निकालूगी और अगर कोई नही मिला तो कांच वगैरहा का गिलास ही पटक कर तोड दूगी पर पर पर तभी काम वाली बाई का मोबाईल पर मैसेज आया कि आज वो नही आएगी इसलिए ये प्रोग्राम भी कैंसिल करना पडा क्योकि झाडू जो खुद लगानी पडती. खैर खाली मुहं फूलाने से ही काम चलाना पडा.

उसी शाम को किट्टी पार्टी मे जाना था वहां सभी शायद किसी अंग्रेजी फिल्म या किसी हीरो की बात कर रहे थे. जैसे बाक्सर, हासा, एप्सो, ग्रेट्डेन, सेट्बर्नार्ड, जर्मन शेफर्ड् आदि .अब मै भी कहां  चुप रहने वाली थी.  मैं भी बोल पडी कि मैने भी देखा है बहुत खूब हीरो हैं और वाह वाह क्या पिक्चर है. मेरा बोलना ही था कि सभी चुप होकर मेरा मुहं देखने लगी और मिसेज शर्मा हंसती हुई बोली कि भई, कोई कुछ भी कहे आपका सैंस आफ हयूमर बहुत ही शानदार है. मै भी मंद मंद मुस्कुराने लगी वो तो बाद मे पता चला कि वो सभी कुत्तो की नस्ल के नाम थे.

खैर उसी समय मैने निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए  कल तक एक कुत्ता मेरे भी घर की शोभा बढाएगा ही बढाएगा. दिखावे का शौक ऐसा चढा कि अगले दिन स्पेशल  दिल्ली गए  और अलग अलग नस्लो से दो चार हुए. ग्रेटडेन की खूंखार बाडी देखकर, उनका खाना पीना  और उसका रेट सुनकर पसीना ही छूट  गया यानि चक्कर खाकर गिरते गिरते बची. बहुतों को देखने के बाद यही फैसला किया गया कि हल्का सा पामेरियन ही ले चलते हैं पर बात पक्की होते होते यही फाईनल हुआ कि अल्सेशियन ही ले कर जाएगे.

हालांकि इसके खाने पीने, रहन सहन के बारे मे जानकर बार बार श्वास अटकने लगी पर शौक था इसलिए चेहरे पर मुस्कान लिए सब समझती रही. अगले कुछ ही पलों में चैक से भुगतान करने के बाद उसे गाडी मे लेकर हम घर लौट आए.

शाम को आते ही अपने फ्रैड सर्किल को न्यौता दे आई. वो अलग बात है कि  भारी भरकम आवाज मे उसके भौकने की आवाज सुन सुन कर सिर दर्द हो चला था. फिर इसका वो सब साफ करना जिसकी आदत ही नही थी और उसे वो सब खिलाना जो मैने कभी सपने मे भी नही सोचा था… लग रहा था बहुत जल्दी मेरा शौक शोक मे बदल रहा है.शाम को सभी सहेलियां अपने अपने पप्पी के साथ उससे मुलाकात करने आई थी.

दोपहर बाद इसका ट्रैनर भी आ गया कि ताकि हमे इसकी आदतो केर बारे मे सीखा सके.पर सच पूछो तो इस कुत्ते के ऐशो आराम देख कर मेरा पूरा शरीर शेक करने लगा है. नाश्ता, दोपहर का भोजन फिर कभी उसे सैर करवाना तो कभी उसके नखरे देखना. मेरा पूरे घर का बजट चार दिन मे ही बिगड चुका है. ट्रैनर का खर्चा देखकर हमने उसे बहुत जल्दी विदा कर दिया पर … पर … पर … कोई शक नही कि शौक के चक्कर मे सारा शरीर शोक मे है और घबराहट और डर के मारे शेक कर रहा है. अब मै उसे निकालना चाह रही हूँ पर इतने रुपए खर्च करके खरीदा था इतने मे कोई खरीदने को तैयार ही नही है.

उसे घर मे लाए आज 10 दिन हो चुके हैं मुझे शक है कि मै उसकी वजह से बहुत जल्दी पागल होने वाली हूं. रात के 12 बजे है और वो फिर भौंक रहा है पता नही उसे भूख लगी है या धूमने जाना है. बस अब तो जैसे भी हो…  इसे बाहर का रास्ता दिखाना ही पडेगा चाहे जो हो सो हो.!!!

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य जरुर बताईएगा …

 

 

 

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13. संदेशे आते हैं

{व्यंग्य}    संदेशे आते हैं मुझे तडपाते …..!!!! mobile messages photo
यकीनन यह गीत बहुत साल पहले लिखा गया था उस समय मोबाईल भी नही होते थे पर अगर आज के संदर्भ मे बात करे तो यह गीत मेरी दुख भरी गाथा के बहुत निकट है.

आज जब लोगो को देखती हू कि हजार हजार वाला मैसेज पैक मोबाईल पर लेते है तो बहुत हैरानी सी होती है. यहां तो ये आलम है कि एक भी मैसेज आए तो बुरी तरह घबराहट होनी शुरु हो जाती है.
वैसे कुछ समय पहले तक ऐसा नही था. मुझे भी शौक था मैसेज का. मै भी बहुत चाव से मैसेज पढती थी और भेजती भी थी कि अचानक एक दिन रात को सपना देखा कि आफिस मे बास बहुत बुरी तरह से डांट रहे हैं. मै अचानक उठ बैठी.खुद को संयत किया ही था कि मेरा मोबाईल बहुत खूबसूरत ध्वनि के साथ बज उठा. दोस्त का मैसेज आया था.
“मै ईश्वर से प्रार्थना करुगां कि वो आपके सारे सपने सच करे”
मै अंदर तक कापं गई. फिर सोचा कि सपना ही तो है और खुद पर मुस्कुराई. मैने निश्चय किया कि सारी की सारी फाईले आफिस ले जाऊगी जिससे डांट पडने की कोई सम्भावना ही न रहेगी इसलिए एक एक कागज ले गई पर पैन ड्राईव ले जाना भूल गई जो सबसे ज्यादा जरुरी थी और फिर वही हुआ जो नही होना चाहिए था.
खैर, उस दिन की बात तो मैं महज इत्तेफाक समझ कर भूल गई. एक दिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि मै पुन: सोचने पर मजबूर हो गई. असल में, बदलते मौसम के चलते मुझे बहुत छींके आ रही थी. हलकी सी कम्कपी सी भी थी सोचा कि मलेरिया आदि का टेस्ट ही करवा लिया जाए आजकल बीमारी का पता थोडे ही लगता है. बस मैने टेस्ट करवा लिया और रिपोर्ट शाम को मिलनी थी. हाथ मे मोबाईल था कि अचानक एक अन्य संदेश आया.
”हमेशा पोजिटिव रहो और जिंदगी मे पाजिटिव ही सोचो”
मै मन ही मन बहुत खुश हुई कि कितनी अच्छी बात लिखी है इसलिए हाथो हाथ मैने अपने दोस्त को मैसेज किया कि धन्यवाद, वाकई मे संदेश बहुत ही प्यारा है. तभी मोबाईल घनघना उठा. मेरा मलेरिया पोजिटिव था. मै बुरी तरह से कांप गई कि अयं ये क्या हुआ. उस दिन से संदेश से डर लगने लगा कि पता नही क्या मैसेज आए और…!!!

काफी दिन तक शांति रही. फिर एक मैसेज भूचाल ले आया. मेरी परम प्रिय सखी मणि ने मैसेज किया कि
आज आपका कोई पता पूछ रहे थे. उनका नाम है सुख, शांति और समृधि मैने बता दिया अब वो आपके घर कभी भी आते ही होंगे.शुभकामनाए!
मै घबरा गई क्योकि सुख और समृधि का तो पता नही पर शांति बुआ तो उतनी चिपकू  हैं कि एक बार घर आ जाए तो महीने भर से पहले जाने का नाम नही लेती. मेरी धडकन जोरो जोरो से चलने लगी. तभी दरवाजे पर घंटी बजी और शायद बुआ….!!!
अब तो यह हाल है कि मै मोबाईल हाथ मे रखने से डरने लगी हूं. मैसेज की इतनी शानदार ध्वनि रखवाई थी पर वही अब हारर फिल्मो के रामसे का संगीत बन कर डराने लगा है. या आज के समय के “आहट … जरा सी आह्ट होती है तो दिल ///  ये लो अचानक फिर से एक और मैसेज  आया…
चलो प्रकृति की ओर ..!! असली सुख वही है.!!

अब आप यही सोच रहे होंग़े कि यह तो सच है प्रकृति के साथ रहना तो हमेशा सुखकर है. जरा मेरी बात तो सुनिए! असल मे “प्रकृति” यहां का सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल है. वहां पर बहुत गम्भीर किस्म के केस ही आते है.!!!

हे भगवान!!! क्या करु क्या नही समझ नही आ रहा !!! बस एक ही बात मुंह से निकल रही है कि संदेशे आते हैं मुझे तडपाते हैं ….!!!!

वैसे ये व्यंग्य आपको थोडा अजीब लग रहा होगा क्योकि आज का समय तो वटसअप और फेसबुक मैसेनजर का जमाना है पर मैं यह बताना चाहूगी कि ये व्यंग्य बहुत पुराना है उन दिनों मैसेज का ही जमाना था …:)

पर आपको …संदेशे आते हैं… व्यंग्य लगा कैसा ??? जरुर बताईगा :)

 

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14. मैं हूँ आम आदमी

व्यंग्य
जी हाँ, मैं हूँ आम आदमी

satire by monica gupta(एक पोस्ट में दो व्यंग्य ) यही होता है कमाल :)
जी हाँ, मैं आम आदमी हूँ। शत प्रतिशत आम आदमी। मेरी सेहत एकदम बढि़या रहती है क्योंकि आम आदमी हूँ ना घर में इन्वर्टर रखने की हैसियत ही नहीं है इसलिए बिजली जाने पर घर के बाहर ताजी हवा लेता हूँ इसीलिए मेरा श्वसन एवं फेफडे़ एकदम मस्त और दुरूस्त हैं।
तोंदनुमा पेट मेरा है नहीं क्योंकि फास्ट फूड़ तो अमीरों के चोचलें हैं हम तो भर्इ, प्याज रोटी खाते हैं और सुखी रहतें हैं। अरे हाँ….. मुझे चश्मा भी नहीं लगा हुआ। आम आदमी हूँ ना सारा दिन टेलिविज़न से चिपका नहीं रह सकता हूँ। इसलिए मेरी आंखें बिना चश्मे के सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं।
आम आदमी हूँ ना इसलिए मेरा किसी से लेन-देन नहीं है ना ही बैंक से रूपया उधार लिया हुआ है इसलिए चैन से सोता हूँ और सुबह ही आँख खुलती है। अपने पड़ोसी को देखकर मैं जलता नहीं हूँ। वो अलग बात है कि मेरे पास सार्इकिल रूपी सवारी है जबकि मेरे पड़ोसी के पास कुछ भी नहीं है।
चुनावों में तो हम आम आदमियों के मजे ही मजे होते हैं क्योंकि उन दिनों नेता हम आम लोगों के घर ही तो दर्शन देते हैं और अपनी तस्वीरें हमारे साथ खिंचवा कर गर्व का अनुभव करतें हैं। अब भर्इ, चूंकि मैं आम आदमी हूँ, पहचान तो कोर्इ है नहीं……….। इसलिए अपने शहर की तीनों-चारों चुनावी पार्टियों के साथ हूँ। कभी किसी के साथ नाश्ता तो कभी दूसरी पार्टी में जा कर चाय पी आता हूँ।

हर सभा में मैं जाता हूँ……..अरे भर्इ……….भाषण सुनने के लिए नहीं……….. बलिक भाषण के बाद बढि़या बैनर फाड़ने के लिए ताकि घर में वो परदे का काम दे जाए। सब्जी की रेहड़ी वाले मुझसे सब्जी का रेट भी ठीक लगाते हैं क्योंकि हाथ में थैला होता है और सार्इकिल से उतरता हूँ वहीं दूसरी ओर जब बड़ी-बड़ी गाडि़यों वाले गाड़ी से उतरते हैं सब्जी लेने के लिए, तो अचानक सबिजयों के दाम एकदम चार गुणा तक पहुँच जाते हैं।
शहर में हर रोज जो हड़ताले होती रहती हैं मैं उसका अहम हिस्सा हूँ जब कहीं हड़ताल या ज्ञापन देना जाता हूँ या फिर भीड़ इकटठी करनी होती है तो मैं वहां मौजूद रहता हूँ क्योंकि भर्इ गाड़ी का आना जाना फ्री और …….. और पता है अपनी दिहाड़ी मिलते ही मैं वहां से खिसक लेता हूँ।
मेरा रिकार्ड रहा है कि मैंने कभी अखबार खरीद कर नहीं पढ़ा। अब भर्इ, मैं कोर्इ खास आदमी तो हूँ नहीं कि अखबार खरीदने पर पैसे खर्च करूं। भर्इ, हर सुबह कभी किसी के दफ्तर में या लाइब्रेरी में जाकर जमकर पढ़ता हूँ। भर्इ, आम आदमी जो ठहरा। इसीलिए मजे कर रहा हूँ।
हाँ, तो मैं कह रहा था कि आम आदमी हूँ ना इसलिए किसी की शादी ब्याह हो तो कर्इ बार भीड़ का हिस्सा बनकर भरपेट भोजन भी कर आता हूँ। अब भर्इ खास आदमी तो हूँ नहीं कि शगुन भी दूं वो भी अपनी हैसियत से बढ़-चढ़ कर। हां, खाने के बाद प्लेट  को किनारे पर ही रख कर आता हूँ ना कि यूं ही रख आता हूँ कि जहां लोग खा भी रहें हैं, वहीं जूठन भी पड़ी है जैसा कि आमतौर पर होता है।
आम आदमी हूँ ना इसीलिए किसी काम में संकोच नहीं करता। घर की सफार्इ हो या सड़क के आस-पास कूड़ा-कचरा ना होने देना। अब भर्इ…………. ये तो खास आदमियों के ही चोंचलें हैं कि अगर चार-पांच दिन जमादार नहीं आया तो सड़क पर गन्दगी और घर में कूड़ादान गंदा ही रहेगा। मैं घर को एकदम चकाचक रखता हूँ। भर्इ………आम आदमी जो ठहरा। तो है ना आम आदमी होने के फायदे………..तो अब आप आम आदमी कब बन रहे हैं।

कैसे लगे दो दो  व्यंग्य … जरुर बताईएगा :)

 

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