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क्लिक करिए और सुनिए 2 मिनट और 7 सैंकिंड का ऑडियो एक बहाना बीमारी के नाम एक बहाना बीमारी के नाम बीमार होना वाकई में अच्छा है … क्या … ह ह अरे हैरान होने की जरुरत नही … मैं सच कह रही हूं और आप भी मेरी बात से सहमत होंगे … बेशक, बेशक बीमार होना […]
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on 12/31/2015
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नया साल-नई खुशी-नया प्लान,
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नया साल-नई खुशी-नया प्लान हम में से कुछों की, शायद, आज भी हमारी यही सोच है कि जो साल के पहले दिन करेगे वही पूरे साल करते रहेगे. 10वीं क्लास के राहुल ने रात को जल्दी सोने का प्लान बनाया है ताकि सुबह सवेरे चार बजे से उठ कर नए सिरे से जम कर, […]
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on 12/19/2015
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निर्भया निर्भया गैंगरेप कांड – दोषी रिहा तीन साल बाद आखिर निर्भया गैंग रेप कांड का सबसे जधन्य नाबालिग दोषी , अपराधी अपनी बाल सजा पूरी करके रिहा हो रहा है. इसे सिलाई मशीन तथा 10 हजार रुपये दिए जा रहे हैं ताकि अपना काम धंधा शुरु कर सके – निर्भया की मां आशा […]
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on 12/19/2015
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पाप- पुण्य और आम इंसान,
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पाप- पुण्य और आम इंसान कुछ समय पहले एक समारोह मे एक दम्पति मिले थे. उन्होने मुझसे पूछा था कि क्या मैं किसी जरुरतमंद को जानती हूं तो अचानक मुझे माली की याद आई. बहुत गरीब पर मेहनती है. बहुत घरों में वो और उसकी पत्नी मिलकर काम करतें हैं. उसके चार बच्चे हैं मैने […]
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शिक्षा का गिरता स्तर कुछ समय पहले एक सहपाठी मिली जो कालिज मे साथ पढती थी. वो बहुत नालायक किस्म की थी ना कभी पाठ याद करना और ना कभी कालिज नियमित आना इसलिए अक्सर टीचर से डांट खाती थी पर प्रैक्टिक्ल मे जब भी बाहर से परीक्षक आते उन्हे किसी की मृत्यु या घर के […]
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on 11/23/2015
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मांगन ते मरना भला मांगन ते मरना भला मजेदार व्यंग्य है जोकि बहुत साल पूर्व दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ. चाहे चौराहे पर भीख मांगना हो या पडोसियों से छोटा मोटा सामान या फिर शादी के लिए दहेज … मांगन मरन समान है या वे नर मर चुके जिन मुख निकसत नाहि …
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on 10/20/2015
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जय माता की ( मोनिका गुप्ता)
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कन्या भ्रूण, अष्टमी और कंजके…
मेरी नजर से
वैसे इस बार अष्टमी पर कंजके करते हुए एक बात जरुर महसूस हुई कि अब की बार लडकियों के लिए ज्यादा मेहनत नही करनी पडी. असल में, नवरात्र की अष्टमी पर कन्या को भोजन करवाया जाता है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है.पिछ्ले काफी बार से अष्टमी पर कन्याए बहुत कम मिलती थी और बहुत भागमभाग रहती थी कि किसी तरफ आठ कन्या मिल जाए पर इस बार सब बहुत आराम से हो गया.बहुत कन्याए आई और बाद में भी आती रहीं.
पहले तो अष्टमी आने से पहले टेंशन सी हो जाती थी कि कहां कहां से लडकी को इकठ्ठा करें या फिर मंदिर में ही हलवा पूरी दे आएं … पिछ्ले काफी समय से, हमारे हरियाणा में जो लिंग अनुपात कम हो रहा था कन्या भ्रूण हत्या बेहिसाब हो रही थी. सरकार द्वारा उठाए गए कठोर कदम और जनता में जागरुकता भी इसका एक कारण हो सकता है…. शायद ये एक शुभ संकेत हो … शायद जल्द ही अनुपात बराबर हो जाए … !!! जय माता की !!!
मैं हमेशा कहती हू कि गर्ल है तो कल है … !!! जय माता की !!!
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on 10/18/2015
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Are You Ready !!
फेसबुक करना और उस से जुडे रहना अच्छा लगता है. कल नव भारत टाइम्स में एक लेख पढा कि किन लोगो को फेसबुक पर करें नमस्कार … यकीनन उत्सुकता हुई और उसे पढने बैठ गई. उसमे कुछ इस प्रकार लिखा था कि जो बेसिर पैर के स्टेटस अपडेट करे और नकारात्मक टाईप स्टेट्स लिखे उसे दूर से ही नमस्कार करें.
कुछ लोग बात बात पर पैसे की शेखी दिखाते हैं और कुछ लोग जो हर छोटी से छोटी बात भी फेसबुक पर डालते हैं इतना ही नही बे फिजूल बातों लिख कर ढेर सारे लोगों को टैग भी करतें हैं ऐसे महानुभावों को भी नमस्कार करें एक और बहुत सही बात लिखी थी और वो ये कि कुछ लोग फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजते हैं और लिखते हैं कि स्कूल टाईम या कालिज में आपकी/ आपका जूनियर थी/ था.जिसे पढ कर हम सोच मे पड जाते है और मित्रता स्वीकार कर लेते हैं.
इस बात ने इसलिए प्रभावित किया कि बहुत दिनों से एक लडकी का मैसेज आ रहा है कि वो मेरी कालिज टाईम में जूनियर थी. मैने पूछा कब तो जो उसने बताया वो मैं नही थी. मेरे मना करने के बाद भी वो बार बार मुझे मैसेज कर रही है.जानबूझ कर कभी हैलो, कभी हाय तो कभी अपनी फोटो भेजती है. मैं, अब समझी कि इस तरह की हरकतें होती रहती हैं इसलिए मैनें उस लडकी को पूरी तरह से इग्नोर कर रखा है.
http://navbharattimes.indiatimes.com/tech/tech-photogallery/7-friends-you-should-never-add-on-facebook/illogical-friends-on-facebook/photomazaashow/49347016.cms
बताईए कैसे कैसे लोग है फेसबुक पर. वैसे फेसबुक पर एक ही गलती हुई अभी तक … एक लडकी से दोस्ती हुई. कुछ समय बाद पता चला कि वो लडकी नही लडका था. मैने तुरंत उसे गुस्सा करके अनफ्रैंड और ब्लाक कर दिया पर उसके बाद बहुत सोच समझ कर मित्रता की. चाहे लडका हो या लडकी सभी को बहुत सोच समझ कर मित्रता करनी चाहिए अन्यथा फेसबुक को दूर से ही नमस्कार करने मे भलाई है !!!
फेसबुक कही फेकबुक न बन जाए.
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on 10/13/2015
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मोनिका गुप्ता( हरियाणा साहित्य अकादमी अवार्ड )
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बात 2009 की है जब मेरी पहली पुस्तक” मैं हूं मणि” को हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से “बाल साहित्य पुरस्कार” मिला. इसके इलावा अभी तक दो अन्य लिखी किताबों “ समय ही नही मिलता”, “ अब मुश्किल नही कुछ भी” को हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से अनुदान मिला.
पहली पुस्तक और उसे ही बाल साहित्य पुरस्कार मिलना बेहद खुशी और गर्व की बात थी. ऐसी खुशी और गर्व उन सभी साहित्यकारों और लेखकों को होता होगा जिन्हे ये सम्मान मिलता है. अब मैं आती हूं आज की बात पर कि आज इतने साल बाद मुझे यह बताने की जरुरत क्यो पडी. वो इसलिए कि कई साहित्यकारों द्वारा मिला सम्मान लौटाया जा रहा है.
इसी बारे में, पिछ्ले एक दो दिन में बहुत लोगो को सुना और उनकी प्रतिक्रिया भी देखी. बेशक, हम जिस समाज मे रहते हैं हमे अगर अपनी बात रखने का हक है तो उसी तरह हमे किसी बात का विरोध करने का भी हक है पर सम्मान को लौटाने का ये तरीका सही नही. हां एक बात हो सकती थी कि देश के सभी साहित्यकारों और लेखको को इसमे शामिल करके उनकी राय जानी जाती और फिर एक जुट होकर ऐसा कदम उठाया जाता जो समाज हित मे होता तो शायद कुछ बात बनती.
कोई कदम उठाने से पहले एक बात जरुर जहन में रखनी चाहिए कि ना मीडिया हमारा है और न ही नेता हमारे हैं हमें अगर अपनी बात रखनी है तो कलम को ताकत बनाए और उसी के माध्यम से अपना विरोध व्यक्त करें. टीवी चैनल पर एक धंटे बैठ कर, बहस कर, लड झगड कर अपने स्तर से गिर कर बात रखने का क्या औचित्य है… !! धरना प्रर्दशन और भूख हडताल भी कोई समाधान नही जैसा कुछ लोग अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं.
हमारी ताकत हमारी लेखनी है और सोशल मीडिया एक खुली किताब है. इस पर हम सब मिलकर अपनी बात दमदार तरीके से रखे तो सोच मे जरुर बदलाव आएगा.
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मोनिका गुप्ता( हरियाणा साहित्य अकादमी अवार्ड )
मोनिका गुप्ता( हरियाणा साहित्य अकादमी अवार्ड )
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on 10/10/2015
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एक मुलाकात रविंद्र जैन जी से
Ravinder Jain – Famous Playback Singer
बात बहुत साल पुरानी है जब रविंद्र जी से ज़ी न्यूज चैनल के लिए इंटरव्यू लेते हुए मिलने का सुअवसर मिला… उनसे बहुत सारी बाते पूछी और इंटरव्यू खत्म होने के बाद मैने अपने सबसे पंसदीदा गाने की फरमाईश की जोकि उन्होने सुनाया भी …
गाना था फिल्म अखियों के झरोखों से का …. जाते हुए ये पल छिन्न क्यो जीवन … !!! बेहद बेहद शानदार गाना जो सीधा दिल की गहराईयों मे उतर जाता है … !!
आज आप दुनिया मे नही रहे पर आपका संगीत, आपकी आवाज सदा सदा इस दुनिया में गूंजती रहेगी …
ईश्वर आपकी आत्मा हो शांति दे !!!
Ravinder Jain ( monica Gupta )
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on 10/4/2015
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बिहार चुनाव
बिहार चुनाव सिर पर खडे हैं वही भाजपा को लेकर मोदी जी को लेकर जनता की नाराजगी बढती ही जा रही है .. मोदी जी को लिस्ट थमा दी गई गई है नाराजगी की … वही मोदी जी हैरान परेशान है और मन बना रहे हैं कि इस बाबत लोगों के विचार आमंत्रित किए जाए …
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on 10/2/2015
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रक्तदाता और सफलता की कहानी
अगर बात हो निस्वार्थ स्वैच्छिक रक्तदान की तो हरियाणा के राजेन्द्र सैनी का नाम आगे आता है.
हरियाणा के जिला कुरुक्षेत्र में रक्तदान से सम्बंधित एक कार्यक्रम चल रहा था. स्टेज पर जो भी वक्ता आ रहे थे सभी राजेंद्र सैनी का धन्यवाद और आभार प्रकट कर रहे थे कि आज रक्तदान के क्षेत्र मे रक्तदाता या कैम्प आयोजक या प्रेरक वो जो भी कुछ है सब राजेंद सैनी जी की वजह से हैं.सभी के मुंह से यह बात सुनकर एक उत्सुकता सी बनी हुई थी कि आखिर सैनी जी है कौन क़िस तरह का काम कर रहे हैं. खैर मीटिंग खत्म हुई और मुझे मौका मिला. सैनी साहब से बात करने का.
न्यू पिंच ने बदल दी दुनिया
1 जून 1962 को पुंडरी मे जन्मे राजेंद्र सैनी आज पूरी तरह से रक्तदान केप्रति समर्पित है. इतना ही नही इनके परिवार परिवार म्रे बेटा और बेटी भी रक्तदाता है. मेरे पूछ्ने पर कि रक्तदान के प्रति ऐसी प्रेरणा कब आई तो उन्होने बताया सन 1998 मे रक्तदान मे मीटिंग के दौरान एक बार उन्होने श्री युद्दबीर सिह ख्यालिया को सुना और रक्तदान के बारे मे उनकी बाते सुनकर उनकी सोच बदली और उन्होने मन ही मन प्रण किया कि वो भी रक्तदान करेंगें. बाकि तो सब ठीक था बस एक ही जरा सी अडचन थी कि उन्हे सूई से डर लगता था. हालाकिं वो बच्चो या बडो को रक्तदान के प्रति जागरुक करते रहते थे कि सूई से जरा भी डर नही लगता पर खुद सूई फोबिया से बाहर नही निकल पा रहे थे.
एक दिन एक कैम्प के दौरान मन बना पर फिर डर गए और सोचा कि किसी लैब मे ही जाकर चुपचाप रक्तदान करके आंऊगा क्योकि अगर यहां रक्तदान कैम्प मे वो रक्तदान करते समय डर के मारे चिल्ला पडे तो दूसरे लोग उनके बारे मे क्या सोचेगें पर शायद उस दिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. डाक्टर ने उनकी भावनाओ को समझा और उन्हे बातो मे लगा कर उन्हे लिटाया और सूई लगा दी. जब रक्तदान करके वो उठे तो नई स्फूर्ति का उनके अंदर संचार हो रहा था, उस समय का अनुभव बताया कि दर्द तो महज इतना ही हुआ जितना कोई नई कमीज पहनता है और उसके दोस्त उसे न्यू पिंच बोलते.
दूसरे शब्दो मे यह न्यू पिंच ही था जिसने एक नई दिशा दी और वो और भी ज्यादा विश्वास से भर कर लोगो को रक्तदान के प्रति जागरुक करने मे जुट गए. तब का दिन है और आज का दिन है. आज सैनी जी 49 बार रक्तदान कर चुके हैं और न्यू पिंच से प्यार हो गया है. उन्होने बताया कि रक्तदान मे अर्धशतक तो लग चुका है पर बस अब वो शतक लगना चाहते हैं. उन्होने बताया कि लोगो को प्रेरित करना और वो प्रेरित हुए लोग आगे लोगो को प्रेरित करके मुहिम जारी रखे तो एक सकून सा मिलता है. बहुत अच्छा लगता है. जब एक दीए से दूसरा दीया जगमग करता है तो दिल को खुशी मिलती है जिसका बयान शब्दो मे नही किया जा सकता.
अपनी बिटिया श्वेता के बारे मे उन्होने बताया कि जब उनकी बिटिया पहली बार रक्तदान के लिए गई तो डाक्टर ने बोला कि वजन कम है वो रक्तदान कर नही पाएगी. इस पर वो काफी मायूस हो गए पर आधे धटे बाद जब देखा तो वो रक्तदान करके बाहर आ रही थी इस पर जब उन्होने हैरानी जाहिर की तो श्वेता ने बताया कि उसने 5-6 केले खा लिए थे और रक्तदान कर के आई है. उसके चेहरे से जो खुशी झलक रही थी वो आज भी भुलाए नही भूलती.
मैने जब उनसे पूछा कि कार्यक्रम के दौरान जब सभी उनका नाम ले कर सम्बोधितकर रहे थे तो वो कैसा महसूस कर रहे थे इस पर वो बोले कि खुशी तो हो रही थी एक नया संचार सा शरीर मे भर रहा था पर दूसरी तरफ अच्छा भी नही लग रहा था. कारण पूछ्ने पर उन्होने बताया कि कही दर्शक यह ना सोचे कि मैंने ही उन्हे कहा है कि मेरे बारे मे भी जरुर कहना. उनकी बात सुनकर मै मंद मंदमुस्कुरा उठी क्योकि मैने खुद सुना कि लोग पीठ पीछे भी उनकी तारीफ कर रहेथे. आखिर नेक काम की अच्छाई तो छुपाए नही छिप सकती.
आज रक्तदान के क्षेत्र मे हरियाणा के राजेंद् सैनी अपनी अलग पहचान बना चुके हैं. पीजीआई रोहतक से उन्हे कैम्प आयोजक रुप मे दो बार सम्मान मिल चुका है और फस्ट एड ट्रैनर यानि प्राथमिक चिकित्सक ट्रैनर व रक्तदाता के रुप मे वो महा महिम बाबू परमानंद, डाक्टर किदवई और श्री धनिक लाल मंडल से सम्मानित हो चुके है. राजेंद्र सैनी दिन रात इसी उधेड बुन मे रहते है कि किस तरहलोगो को जागरुक करे और उन्हे मोटिवेटर बनाए ताकि वो इसका संदेश आगे औरआगे फैलाते रहें. भले ही राजेंद्र सैनी आज 52 साल के हो चुके हैं पर खुद को वो नौजवान ही मानते है उनका कहना है कि रक्तदाता कभी बूढा नही होता वो हमेशा जवान ही बना रहता है.उनकी भाषा मे ‘ तो आप न्यू पिंच कब करवा रहे हैं” !!!!
हमारी ढेर सारी शुभकामनाएं !!!
रक्तदाता और सफलता की कहानी
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रक्तदान और महिलाए
बेशक जागरुकता का अभाव है पर फिर भी बहुत महिलाएं हैं जो रक्तदान के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही हैं…
आज जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी वो ठेठ गांव की अनपढ महिला है.उम्र 50 से भी उपर हो चुकी है पर अगर रक्तदान की बात करें तो उसमे वो हमेशा ना सिर्फ सबसे आगे रहती है बल्कि लोगो को रक्तदान के प्रति अपने ठेठ मारवाडी अंदाज मे प्रेरित भी करती हैं. अभी तक वो 21 बार से ज्यादा बार रक्तदान कर चुकी हैं.
इस जागरुक महिला का नाम है श्रीमति बिमला कासंवा. इनका जन्म राजस्थान के गांव खारा खेडा मे हुआ. अपने 6 भाई बहनो मे ये सबसे बडी थी. अपनी मां के साथ घर का सारा काम करवाना फिर अपने छोटे छोटे भाई बहनो की भी देखभाल करना. बस इन्ही सब कामो मे बचपन कैसे निकल गया पता ही नही चला.
उन्होने बताया उस समय लडकियो को पढाने पर जोर नही दिया जाता था. घर के काम काज मे ही लगा दिया जाता था. वो भी इसी कामकाज मे व्यस्त हो गई. पर ऐसा भी नही था कि उनका मन पढने का या स्कूल जाने का नही करता था. जब बच्चे सुबह सुबह स्कूल मे प्रार्थना करते तो उनका मन भी करता कि वो भी जाए पर यह सम्भव ही नही हो पाया और वो अनपढ ही रह गई.
समय बीता और उनकी शादी हो गई. अपने नए जीवन का स्वागत उन्होने बहुत खुशी खुशी किया. ईश्वर ने उन्हे प्यारी सी बेटी और एक बेटा दिया. यहां भी वो अपने घरेलू कामो मे ही व्यस्त रही. तभी अचानक एक दिन उनकी जिंदगी मे एक यादगार दिन बन गया.
10 जनवरी 1997 को हरियाणा के सिरसा में एक रक्तदान मेला लगा. उनके पति श्री भगीरथ जी ने बस एक बार कहा कि रक्तदान मेला लगा है .यहां रक्तदान करके आते हैं. उन्हे रक्तदान की जरा भी समझ नही थी पर वो अपने पति के साथ चली गई. वहां इन्होने रक्तदान किया और रक्तदान करके बेहद खुशी मिली. बस उस दिन के बाद से इसके बारे मे सारी जानकारी ले कर इन्होने मन बना लिया कि ये हर तीन महीने बाद रक्तदान करेगीं.
रक्तदान के दौरान इन्हे यह भी पता चला कि इनका ब्लड ग्रुप बी नेगेटिव है . डाक्टर ने बताया कि इसकी मांग बहुत है इसलिए जब भी जरुरत होगी वो उन्हे बुला लिया करेगें. उसके बाद काफी बार इन्होने इमरजैंसी मे भी रक्तदान दिया.
एक वाक्या याद करते हुए उन्होने बताया कि एक बार रात को एक बजे फोन आया कि रक्तदान के लिए उनकी जरुरत है और डाक्टर ने उनके लिए एबूलैस भेज दी.इतनी देर रात गाडी आई तो पडोसी भी जाग गए. पर तब जल्दी थी इसलिए वो फटाफट उसमे सवार होकर चली गई. सुबह आकर वो अपने रोजमर्रा के कामो मे जुट गई. वही पडोसी आकर पूछ्ने लगे कि रात को क्या हुआ. इस पर उन्होने हंसते हुए बताया कि कुछ नही हुआ बस रक्तदान करने गई थी.
बिमला जी हो इस बात का दुख जरुर है कि उन्हे पहले इसकी जानकारी नही थी पर अब जब उन्हे इसकी अहमियत का पता चला तो उन्होने अपने दोनो बच्चो को भी रक्तदान का पाठ पढाया. आज इनका सारा परिवार नियमित रुप से रक्तदान करता है. बिमला जी समय समय पर रक्तदान से सम्बंधित वर्कशाप मे जाकर रक्तदान के प्रति जनता को जागरुक भी करती रहती है.
यकीनन आज बिमला कांसवा सभी लोगो के लिए एक प्रेरणा से कम नही है.
रक्तदान और महिलाए
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राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस
राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎं…
खुशी का विषय यह है कि आईएसबीटीआई यानि इंडियन सोसाईटी आफ ब्लड ट्रांसफ्यूजनएंड इमयोनोहीमेटोलोजी ने ही इस दिवस की शुरुआत सन 1976 में की थी. आईएसबीटीआई पिछ्ले चालीस सालों से रक्तदान से जुडी गैर सरकारी संस्था है और स्वैच्छिक रक्तदान के क्षेत्र मे अभूतपूर्व कार्य कर रही है. स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति पूरी तरह समर्पित आईएसबीटीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. युद्द्बीर सिह खयालिया एक ही दृष्टि कोण लेकर चल रहें हैं कि जनता में स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति इतनी जागरुकता आ जाए कि सुरक्षित रक्त मरीज की इंतजार करे ना मरीज रक्त की. डाक्टर ख्यालिया का मानना है कि इसके लिए शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान की भावना का होना बेहद जरुरी है और ऐसी जागरुकता जन जन मे कैसे लाई जाए. अपने इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए आईएसबीटीआई दिन रात कार्यरत है. इन्ही सब बातों को ध्यान मे रखते हुए जगह जगह ट्रैंनिग करवाई जाती है. स्कूल कालिजो मे क्विज, पोस्टर बनाना तथा अन्य माध्यमों से जागरुकता लाई जाती है. भिन्न भिन्न रक्तदान के खास अवसरो पर जैसाकि विश्व रक्तदान दिवस, स्वैच्छिक रक्तदान दिवस आदि कुछ खास दिनों में प्रतियोगिताए भी आयोजित करवाई जाती है.
रक्तदान से जुडे होने के कारण अक्सर मेरे पास भी रक्त की जरुरत के लिए फोन आते रहते हैं.यथा सम्भव मदद करने की कोशिश तो करती हूं पर जहां तक हमारी पहुंच ही नही है वहां मदद करना या किसी को कहना बहुत मुश्किल हो जाता है. दिल्ली में डाक्टर संगीता पाठक Sangeeta Pathak, सोनू सिह Sonu Singh Bais , राजेंद्र माहेश्वरी (भीलवाडा, राजस्थान) मंजुल पालीवाल, रोहतक हरियाणा से , मुम्बई से दीपक शुक्ला जी, ब्लड कनेक्ट की पूरी टीम नई दिल्ली से और चंडीगढ में डाक्टर रवनीत कौर को जब भी मैंने वक्त बेवक्त फोन किया और रक्त की जरुरत के बारे मे बताया तो उन्होनें तुरंत एक्शन लिया और एक ही बात कही कि चिंता नही करो आप उन्हे मेरा नम्बर दे दो. कोई फिक्र नही. परेशानी मे पडे एक अंजान के लिए ऐसी बात कहना बहुत बडी बात है. मैं उनका अक्सर खुले लफ्जों में और कई बार दिल ही दिल मॆ बहुत धन्यवाद करती हूं और फिर विचार आता है कि क्यों ना ऐसे शानदार और समर्पित व्यक्तित्व पूरे देश भर में हो. हमारे पास देश भर में कही से भी फोन आए. हम किसी को रक्त की कमी से न मरने दे.
अगर डाक्टर या ब्लड बैंक से जुडे लोग हों तो बहुत बेहतर है या फिर कोई ऐसे जो स्वैच्छिक रक्तदान से जुडे हों और समाज के लिए निस्वार्थ भाव से कुछ करना चाहते हों. उनका स्वागत है. यह बात पक्की है कि आपके सहयोग के बिना यह कार्य सम्भव नही है और यह बात भी पक्की है कि इस लक्ष्य को हम जीत सकते हैं. अगर आप ऐसे किसी भी व्यक्ति को जानते हैं या आप खुद ही हैं तो नेक काम मे आगें आए. अपना नाम और पता monica.isbti [at]gmail.com पर भेज दीजिए….. !!!!
आईएसबीटीआई ( मोनिका गुप्ता)
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आज शाम घर के सामने से एक छोटा सा बच्चा अपनी मम्मी के साथ जा रहा था और अचानक आसममान ने उडती चिडिया देखकर उत्साहित होता हुआ बोला देखो मम्मी…. टवीटर !!! और टवीट टवीट कह कर बोलने लगा.. मैं सब देख रही थी और देखकर सोचने लगी …आजकल बच्चों बडो मे नेट का क्रेज बढता जा रहा है घंटो घंटो हम नेट पर बैठे रहते हैं. असली चिडिया की चहचाहट उनका कलरव भूल गए हैं… चिडिया को टवीटर के नाम से जानने लगे हैं… नेट का क्रेज होना चाहिए बहुत अच्छी बात है पर हमे प्रकृति से भी दूर नही जाना चाहिए !!
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कार्टून ( मोनिका ग़ुप्ता)
स्वच्छ भारत
बनाम गांधी जयंती
पिछ्ले साल यानि सन 2014 में 2 अक्टूबर से स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई. आरम्भ में झाडू हाथ मे लेकर फोटो खिचवाने का बहुत क्रेज देखा गया. नेता लोग साफ सुथरी जगह जाकर अभियान का शुभ आरम्भ करते चाय ठंडा पीकर अपनी बाईट देकर लौट जाते पर इस बात को जब मीडिया मे उछाला गया तो फोटो का काम लगभग बंद हो गया और स्वच्छता भी कही दिखाई नही दी. और देखिए स्वच्छ भारत अभियान में बापू गांधी को ही स्वच्छता का चश्मा लगा दिया…
स्वच्छता तभी आएगी जब आम जन स्वच्छता को लेकर जागरुक होगा. मेरे विचार से हमारे देश वासी जुर्माने से बहुत डरते हैं .. जो गंदगी फैके उस पर जुर्माना कर देना चाहिए पर उससे पहले सडक पर कूडा दान होने चाहिए और जमादार नियमित रुप से घरों में आने चाहिए !!!
: | स्वच्छ भारत अभियान: एक कदम स्वच्छता की ओर
महात्मा गांधी ने अपने आसपास के लोगों को स्वच्छता बनाए रखने संबंधी शिक्षा प्रदान कर राष्ट्र को एक उत्कृष्ट संदेश दिया था। उन्होंने “स्वच्छ भारत” का सपना देखा था जिसके लिए वह चाहते थे कि भारत के सभी नागरिक एक साथ मिलकर देश को स्वच्छ बनाने के लिए कार्य करें। महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के स्वप्न को पूरा करने के लिए, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी – बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडो में खुलती है ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान – बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडो में खुलती है शुरू किया और इसके सफल कार्यान्वयन हेतु भारत के सभी नागरिकों से इस अभियान से जुड़ने की अपील की।
इस अभियान का उद्देश्य अगले पांच वर्ष में स्वच्छ भारत का लक्ष्य प्राप्त करना है ताकि बापू की 150वीं जयंती को इस लक्ष्य की प्राप्ति के रूप में मनाया जा सके। स्वच्छ भारत अभियान – बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडो में खुलती है, सफाई करने की दिशा में प्रतिवर्ष 100 घंटे के श्रमदान के लिए लोगों को प्रेरित करता है। माननीय प्रधानमंत्री द्वारा मृदला सिन्हा, सचिन तेंदुलकर, बाबा रामदेव, शशि थरूर, अनिल अम्बानी, कमल हसन, सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा और तारक मेहता का उल्टा चश्मा की टीम जैसी नौ नामचीन हस्तियों को आमंत्रित किया गया कि वह भी स्वच्छ भारत अभियान में अपना सहयोग प्रदान करें, इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करें और अन्य नौ लोगों को भी अपने साथ जोड़ें, ताकि यह एक श्रृंखला बन जाएं। आम जनता को भी सोशल मीडिया पर हैश टैग #MyCleanIndia लिखकर अपने सहयोग को साझा करने के लिए कहा गया।. india.gov.in
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मन की उलझन
कुछ देर पहले मार्किट में एक जानकार मिली. वो अपनी बिटिया के साथ शापिंग करने आई हुई थी. उसकी शादी को साल भर ही हुआ होगा. वो बिटिया मेरे पास आई और बोली कि आपसे बात करनी है. मेरे कहने पर कि बताओ इस पर वो बोली कि अकेले मे … शाम को घर आएगी पर मम्मी को बिना बताए. टेंशन तो मुझे भी हुई कि कोई न कोई गम्भीर बात है. जरुर दहेज आदि का ही मामला होगा पर मम्मी के सामने नही बोला यानि कुछ और ही बात है.
ठीक चार बजे वो घर आई. उसने कहा कि आप मम्मी को समझाईए वो बहुत फोन करती हैं मुझे. एक दिन मे कम से कम पाचं सात बार… क्या कर रही हो ? आज क्या खाया? कौन सी साडी पहनी? दहेज खूब दिया है ठाठ से रह.. किसी की मत सुनियो और घर का काम करने की जरुरत नही. रानी की तरह रह… वो बोलती ही जा रही थी कि वो अपने नए परिवार के साथ मिलजुल कर रहना चाह्ती है पर मम्मी की बात सुन कर उनकी बातों में आने का डर लगा रहता है. अब आप ही मम्मी को समझाईए कि दखल न दें उसे अपने हिसाब से घर चलाने दें…
मैं उसकी बात से सहमत हूं. कई बार माओं के ज्यादा प्यार के चक्कर में बसा बसाया घर बिखर भी जाता है पर मुझे खुशी इस बात की है कि बिटिया समझदार है. वो सही गलत जानती है. बिटिया तो चली गई और सोच रही हूं कि उसकी मम्मी को समझाना भी एक अभियान है या तो उसकी मम्मी से सीधी बात करुं या कि सीधी बात न करके किसी दूसरे का उदाहरण देकर उसे समझाऊं या फिर उसकी बिटिया ही मां को समझाए हो सकता है उसने समझाया होगा पर बात नही बनी होगी… वैसे क्या आप आईडिया दे सकते है ???
मन की उलझन
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Rotary Blood Bank
आईएसबीटीआई की दिल्ली में कांफ्रेस के दौरान बहुत से ऐसे लोगों से मिलना हुआ जो रक्तदान पर बहुत जबरदस्त कार्य कर रहे थे. किसी की संस्था है तो कोई संस्था के साथ मिलकर रक्तदान जैसे सामाजिक कार्य में निस्वार्थ भावना से कार्य कर रहें हैं. लक्ष्य और उद्देश्य सभी का एक है कि देश में शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान हो.
इसी कार्यक्रम में आई रोट्ररी ब्लड बैंक दिल्ली की सीएमओ अंजू वर्मा और चीफ टैक्निकल आफिसर आशा बजाज जी से मिलना हुआ. बेहद मिलनसार और सबसे अच्छी बात ये कि रक्तदान के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं. आशा जी ने बताया कि वो और अंजू वर्मा जी जब से रोट्ररी ब्लड बैंक शुरु हुआ वो तभी से यानि 2001 से इसके साथ जुडी हैं.
रोट्ररी ब्लड बैंक का मिशन यही है कि दिल्ली और दिल्ली के आसपास रहने वालों की रक्त की कमी से कभी जान न जाए. इसलिए उनकी संस्था कभी कालिज, कभी स्कूल कभी किसी संस्थान में तो कभी कैम्प के माध्यम से रक्त एकत्र करने के साथ साथ जागरुक भी करते हैं. स्कूल में पेरेंटस टीचर मीटिंग के दौरान कैम्प लगाते हैं क्योकि अगर टीचर या माता पिता रक्तदान करेंगें तो निसंदेह बडे होने पर बच्चे भी आगे आएंगें.
उन्होने बताया कि ब्लड बैंक में किसी भी तरह से रिप्लेसमैंट नही है और 24 घंटे खुला रहता है. जिसे जब भी जरुरत हो वो फोन करके या मिलकर विस्तार से जानकारी ले सकता है. दिल्ली मे तुगलकाबाद में उनका रोट्ररी ब्लड बैंक है और टेलिफोन नम्बर 01129054066- 69 तक नम्बर हैं.
आशा जी ने यह भी बताया कि थैलीसिमिया का टेस्ट भी यहां होता है. इस बारे में भी वो लगातार जागरुक करते रहतें हैं कि शादी से पहले थैलीसीमिया टेस्ट जरुरी होता है ताकि शादी के बाद किसी भी तरह की दिक्कत का सामना न करना पडे.
आजकल बहुत ज्यादा व्यस्तता है क्योंकि डेंग़ू की वजह से प्लेटलेटस और रैड ब्लड सैल की बहुत मांग है. उन्होनें बताया कि ब्लड बैंक का सारा स्टाफ स्वैच्छिक रक्तदाता है और हर तीन महीने बाद रक्तदान करता है.
मेरे पूछने पर कि एक महिला होने के नाते महिलाओं की खून की कमी के बारे में क्या कहना चाहेंगी इस पर वो मुस्कुरा कर बोली कि एनीमिया प्रोजेक़्ट पर भी उनका ब्लड बैंक जुटा हुआ है और समय समय पर चैकअप कैम्प लगाए जाते हैं और जागरुक किया जाता है.
रही बात आज के समय कि तो उन्होनें बताया कि बहुत बदलाव आया है और आ भी रहा है. बहुत अच्छा लगता है जब स्वैच्छिक रक्तदान के लिए ना सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाए भी आगे आती हैं. हालाकि यूरोपिय देशों की तुलना में तो बहुत कम है पर फिर भी ऐसी जागरुकता होना एक शुभ संकेत है.
आशा जी ने बताया कि वो लगभग 30 सालों से इस क्षेत्र से जुडी है. जब भी कोई परेशान, दुखी व्यक्ति रक्त के लिए आता है और उसे वो मिल जाता है तो उसके चेहरे की खुशी देख कर एक ऐसी आत्मसंतुष्टि मिलती है जिसे शब्दों मे व्यक्त नही किया जा सकता.
मीटिंग का अगला सैशन शुरु हो गया था इसलिए मुझे अपनी बात को यही रोकना पडा. जिस सच्चे मन से उनकी संस्था कार्य कर रही है उसके लिए पूरी टीम बधाई की पात्र है… शुभकामनाएं !!!
यकीनन देश में अगर हम शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान देखना चाह्ते हैं तो हम सभी को मिल कर सांझा प्रयास करना होगा.
Rotary Blood Bank
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on 9/29/2015
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Digital India by Monica Gupta
बेशक डिजिटल इंडिया बहुत अच्छा प्रयास है औए स्वागत योग्य है पर जिस तरह से नेट वर्क इतना धीमा चल रहा है कि सुबह से दोपहर हो जाती है बस Page is loading. ही चलती रहती है कुछ पोस्ट नही कर पाते ऐसे मे किस मन से सुस्वागत करें हम इसका …
Here’s what you need to know about the Digital India initiative | Latest News & Updates at Daily News & Analysis
Several people have changed their Facebook profile pictures after CEO Mark Zuckerberg and Prime Minister Narendra Modi did so and urged other to follow suit to support the Digital India initiative. But wait–this profile picture change actually ties more closely in to Facebook’s own Internet.org strategy, which should not be confused as being congruous with India’s Digital India movement.
So merely switching to a tricolour profile picture has, in fact, nothing to do with the Digital India initiative. Lets clear the air and re-look at the tenets that define the Digital India initiative.
Also Read: From Microsoft’s Satya Nadella to Apple’s Tim Cook, who said what about ‘Digital India’
Launched by Prime Minister Narendra Modi on July 1, 2015, the Digital India initiative was started with a view to empower the people of the country digitally. The initiative also aims to bridge India’s digital segment and bring big investments in the technology sector. Via dnaindia.com
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ऐसा भी होता है
कई बार कुछ ऐसा पढने या सुनने को मिल जाता है कि लगता ही नही है कि यह हकीकत है. ऐसा लगता है मानो कोई फिल्मी कहानी है और किरदार अपना अपना काम खत्म कर के चले जाएगे. पर ये हकीकत है.जिसे मै आपको जरुर बताना चाहूगी. बात है सन 2012 की जिसे मैने नेट पर ही पढा था.
पूना के एक जाने माने industrialist श्री जावेरी पूनावाला हैं और उनका ड्राईवर है देवी दत्तजोकि पिछ्ले तीस सालो से उनके यहां कार चला रहा है.श्री पूनावाला उस समय जरुरी मीटिंग के सिलसिले मे पूना आए हुए थे जब उन्हे पता चला कि उनके ड्राईवर की मृत्यु हो गई है. उन्होने सारे काम रोक कर देवी दत्त के परिवार वालो से विनती की कि वो जरा उनका इंतजार करे और वो तुरंत हैलीकाप्टर से मुम्बई रवाना हो गए. वापिस लौट कर उन्होने उसी गाडी को सजवाया जिसे देवीदत्त चलाया करते थे और उसमे देवीदत्त का पार्थिव शरीर रखवाया और उस गाडी को स्वंय चला कर घाट तक ले कर गए.
जब उनसे पूछा कि उन्होने ऐसा क्यो किया तो उन्होने कहा कि देवीदत्त मे दिन रात उनकी सेवा की. वो उसके बहुत आभारी है जिसके एवज मे वो इतना तो कर ही सकते है.इसके साथ साथ देवीदत्त बहुत गरीबी से ऊपर उठे थे और इन हालातो मे उन्होने अपनी लडकी को सी.ए. बनाया है जोकि तारीफ के काबिल है.
श्री जावेरी ने बताया कि इसमे कोई शक नही कि रुपया तो हर कोई कमा लेता है पर हमे उन लोगो का भी धन्यवादी होना चाहिए जिनका सफलता मे योगदान रहा. उनका ऐसा मानना है और उन्होने वही किया.
वाकई मे,यह मानवता का एक शानदार उदाहरण है जो कुछ ना कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है कि ऐसा भी होता है.
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सफलता की कहानी
रक्तदान के क्षेत्र में एक प्रेरणा है अशोक कुमार
रक्तदाता श्री अशोक कुमार
रक्तदान से सम्बंधित एक कार्यक्रम चल रहा था. मीडिया, नेता, वक्ता, टीचर, डाक्टर आदि बहुत सज्जन मौजूद थे. सभी बहुत ध्यान पूर्वक कार्यक्रम सुन रहे थे तभी अचानक दरवाजा खुला और एक पुलिस वाले भीतर आए. उन्हे देख कर अन्य लोगो की तरह मेरे मन मे भी यही सवाल उठ रहा था कि यह यहां किसलिए आए हैं इनका यहां क्या काम है. इतने मे उन्हे स्टेज पर बुलाया गया. मैने सोचा कि स्पीच वगैरहा देकर चले जाएगे. पर स्पीच के दौरान सुना कि वो तो स्वयं रक्तदाता हैं और अभी तक 45 बार रक्तदान कर चुके हैं और 15 बार रक्तदान के कैम्प लगा चुके हैं. उनकी बातो से प्रभावित होकर मैने विस्तार से उनसे बात की.
सफलता की कहानी
उनका पूरा नाम है श्री अशोक कुमार. 3 सितम्बर सन 1972 मे जन्मे अशोक जी का जन्म हरियाणा के करनाल मे हुआ. पिता आर्मी मे थे. उन्होने सन 1962 और 1965 की लडाई भी लडी इसलिए बचपन से ही वो उनसे प्रेरित थे और बस एक ललक थी कि बडे होकर या तो आर्मी या पुलिस मे जाना है. कालिज मे जाने के बाद एनसीसी ज्वाईन कर ली थी. वैसे ना तो उन्हे सांइस और ना ही कामर्स का शौक था पर बडो के कहने पर उस विषय को लेना पडा. इससे पहले मैं कुछ और पूछती उन्होने बताया कि आज की तारीख मे उनके पास चार डिग्री बीकाम, एमकाम, एलएलबी और एलएलएम की हैं. फिर सन 98 मे वो पुलिस मे भर्ती हुए और आजकल हरियाणा के कुरुक्षेत्र मे वो फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट हैं.
रक्तदान के बारे मे अपने पहले अनुभव को उन्होने इस तरह से बताया कि सन 90 मे जब एनएसएस का कैम्प लगा था तब वो और उनके तीन चार दोस्त रक्तदान करने गए. तब अपने तीनो दोस्तो मे वो ही रक्तदान कर पाए और उनके दोस्त किसी ना किसी वजह से रक्त दान नही कर पाए. उस दिन इनमे एक अलग सा ही आत्मविश्वास आ गया और बस तभी से रक्तदान की शुरुआत हुई. एक और अच्छी बात यह भी हुई कि घर पर सभी ने शाबाशी दी और प्रोत्साहित किया. वैसे भी आर्मी मे समय बेसमय रक्त की जरुरत तो पडती ही रहती थी तब उनके पिता भी हमेशा आगे रहते. यही भावना उनके मन मे भी घर कर गई थी कि वो भी कभी भी जरुरतमंद को अवश्य खून दिया करेगें.
अब मेरे मन मे एक ही सवाल था कि पुलिस वालो के लिए अक्सर लोग बोलते है कि ये लोग तो खून पीतें हैं. इस पर वो मुस्कुराते हुए बोले कि यकीनन बोलते हैं और कई बार दुख भी होता है पर खुद काम अच्छा करते चलो तो कोई परेशानी नही आएगी. एक बार का वाक्या याद करते हुए उन्होने बताया सन 2010 मे जब उन्होने खून दान किया तो अखबार मे प्रमुखता से खबर छपी तो श्री सुधीर चौधरी (आईपीएस) ने भी यही बात की थी और शाबाशी भी दी थी कि बहुत अच्छा कार्य कर रहे हों. तब भी विश्वास को एक नया बल मिला था.
कोई मजेदार बात सोचते हुए उन्होने बताया कि जब भी वो कैम्प लगाते है कि जानी मानी शखसियत को बुलाते हैं. एक बार ( नाम नही बताया) जब उन्होने अपने कैम्प मे आने का निमत्रंण दिया तो पहले तो उन्होने सहर्ष स्वीकार कर लिया पर बाद मे बोले कि उन्हे रक्त देख कर ही डर लगता है इसलिए वो नही आ पाएगे. पर बहुत प्रयास और समझाने के बाद वो आए और पूरे समय कैम्प पर ही रहे पर रक्तदान के नाम से आज भी कतराते हैं.
अशोक जी ने बहुत गर्व से बताया कि आज की तारीख मे लगभग 1000 पुलिस विभाग के लोग उस मुहिम से जुडे हैं और वो जब भी खुद कैम्प आयोजित करते हैं ज्यादा से ज्यादा पुलिस को जोडते हैं ताकि समाज मे फैली धारणा को वो बदल सकें. समाज सेवा मे मात्र रक्तदान ही नही वो भ्रूण हत्या, वृक्षारोपण, सडक दुर्धटना मे घायल लोगो की मदद करना और गरीब बच्चो को छात्रवृति भी प्रदान करवाते हैं. आज की तारीख मे अशोक जी के पास दो नेशनल एवार्ड हैं. 15 स्टेट एवार्ड ,13 जिले व प्रशासन की ओर से मिले सम्मान और 23 एनजीओ की तरफ से मिले विशेष सम्मान मिले है जोकि बहुमूल्य हैं. मैं उनकी बातों से शत प्रतिशत सहमत थी.
अंत मे जब मैने पूछा कि जनता के लिए क्या संदेश है इस पर वो बोले कि एक कविता लिखी हैं. ये बात फिर चौका गई क्योकि पहली बात तो वो पुलिस वाले फिर रक्तदाता और फिर अब कवि भी. अपना संदेश उन्होने कुछ इस तरह से रखा….
आओ मिल कर कसम ये खाए
खून की कमी से ना कोई मरने पाए
जात पात और मजहब से उपर उठ कर
इंसानियत की जोत जगाए
हम तो है भारत वासी देख का गौरव ऊंचा बढाए !!!
अशोक जी इसी तरह रक्तदान की मुहिम को आगे बढाते रहॆं. आईएसबीटीआई परिवार की ओर से ढेरो शुभकामनाएं !!!!
सफलता की कहानी आपको कैसी लगी ?? जरुर बताईगा !!
मोनिका गुप्ता
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कार्टून नेता (मोनिका ग़ुप्ता)
नेता जी
कोई शक नही कि आजकल सभी डेंगू से डरे हुए हैं एक बाईट हालत खराब कर रही है. वही ये देखिए एक प्रतियोगिता हो रही है कि किसकी बाईट ज्यादा तेज… नेता जी की या डेंगू मच्छर की …
किसमें कितना है दम !!!
नेता जी
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डेंगू का कहर
डेंगू का कहर….
सभी कहते हैं डेगू का कहर .. डेंगू का कहर … असल में, कहर तो जनता ने ढाया हुआ है गंदगी का तभी तो हमे आना पडता है बार बार भारी मात्रा में … सम्भल जाओ लोगो अन्यथा ….
हर साल चुपके से आपके घर में घुस आने वाला डेंगू का वाइरस मच्छरों की एडीज़ प्रजाति में पनपता है। किसी मरीज को डेंगू है या नहीं इसका पता करने के लिए होने वाले टेस्ट का खर्च प्राइवेट अस्पतालों में एक से डेढ़ हजार रुपये है।
http://khabar.ndtv.com/news/india/of-dengue-virus-and-the-vaccine-is-not-1218369
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Toilet – A Necessity कल एक खबर पढी कि दुमका झारखंड की 17 साल की किशोरी ने इसलिए आत्मह्त्या कर ली कि घर मे टायलेट नही था… इधर उधर खेतो में जाने से बहुत परेशान थी … लेकिन शायद परिवार ने इसकी मह्त्ता को कभी नही समझा कि ये भी ज्यादा जरुरी है…. बेहद दुखद … महिलाओं की मान सम्मान आबरु शौचालय ही है … घर मे शौचालय होना बेहद जरुरी है.
घर में शौचालय न होने पर बारात का वापिस चला जाना या महिला का घर छोड देना या शौचालय बनवाने की जिद ठान लेना तो सुना , शौचालय की वजह से महिला का रेप होना भी होना सुना और अब मौत भी इसकी वजह से जुड गई है…
भले ही फिलम अभिनेत्री विद्या बालन समझाए या खिलाडी विजेंद्र … पर जब तक लोगो की सोच नही बदलेगी … तब तक कुछ नही हो सकेगा … !!! ये मेरा गांव गांव जाकर महिलाओं से पूछ्ने का पर्सनल अनुभव भी रहा है जब महिलाए बताती थी कि मुहं अंधेरे या शाम ढलने पर ही खेत जाना पडता है दिन मे कभी कोई दिक्कत आने पर रोक कर ही रखना पडता है और मासिक धर्म के दिनों में तो बहुत मुश्किल से दो चार होना पडता है… बेशक मानसिकता यह भी देखने को मिली कि जो शौचालय के लिए पैसा मिला उसे किसी और चीज मे खर्च कर दिया … क्योकि शौचालय की अहमियत समझ नही आई … बी ए पार्ट वन मे पढने वाली लडकी खुले मे शौच जाना नही सहन कर पाई और आत्महत्या कर ली … बेहद अफसोस हुआ … जागो जनता जागो
Toilet – A Necessity
| Minor | Committed | Suicide | Dumka | | Hindi Latest News
घर में टॉयलेट न होने पर शादी टूटने और ससुराल छोड़ने के मामले तो आपने सुने होंगे, लेकिन अब ऐसी घटना सामने आई है, जो किसी को बेचैन कर सकती है. झारखंड में 17 साल की एक लड़की ने घर में टॉयलेट न होने पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. बताया जा रहा है कि झारखंड के दुमका जिले में रहने वाली लड़की ने माता-पिता … See more…
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कुछ देर
मैं हँसी
तो फूल मुस्कुरा उठे
मैनें छेड़ा तराना
तो इन्द्रधनुष और खिल उठा……
जिसकी कामना की……..
वही मिलती चलती गर्इ….
मन सुख समुंद्र में
लगा गोते लगाने
चारों और खुशनुमा माहौल
लगा मन में अजब स्फूर्ति भरने
ये धरती……… ये आकाश
ये चाँद …………ये तारे
सभी लगे मस्ती में झूमने
तभी…………….
टूटी तंद्रा मेरी
बीमार काया
टूटा पलंग, सूखी रसोर्इ
यहाँ गरीबी का हो रहा था ताँड़व
अचानक
फीकी हँसी मेरे अधरों पर खिल उठी
चलो………….
कोर्इ नही कल्पना तो है मेरे साथ
जब चाहे उसे नया रूप देकर
खुद को बहला तो सकती हूँ
कुछ देर जी तो सकती हूँ………….
कुछ देर जी तो सकती हूँ……………
कई बार जिंदगी में ऐसे पल आते हैं जब मन एक दम अकेला और मायूस सा हो जाता है… अब ये अपनी ऊपर हैं कि दुखी मन को लेकर दुखी हो जाओ या फिर मनोबल बनाए रखने के लिए मन को खुश रखो … मैने मन को ही खुश रखा क्योकि उसने मेरा ही भला होना था … ज्यादा तनाव रखती तो तबियत खराब हो जाती और डाक्टरों के चक्कर , अस्पताल के चक्कर लगाने कौन से आसान है भई … इसलिए सकारात्मक सोच लिए जिओ और देखना समस्या का हल भी निकल जाएगा बस एक ही कंडीशन है कि आप अपने कार्यों के प्रति ईमानदार रहना होगा …
कैसी लगी मेरी ये कविता ” कुछ देर” … जरुर बताईगा
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