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1. रक्तदान, रक्तदाता और असली खुशी का अहसास

रक्तदान, रक्तदाता और असली खुशी का अहसास ब्लड नेगेटिव पर सोच सकारात्मक कल किसी जानकार को नेगेटिव ब्लड चाहिए था. मैने तुरंत अजय चावला जी को फोन लगाया और रक्तदाता तुरंत मिल गए. वो आए और उन्होनें  blood donate किया और जानकार की जान बच गई. ऐसा एक बार नही दो तीन बार हुआ है […]

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2. रक्तदान की महत्ता

रक्तदान की महत्ता 

रक्तदान ( मोनिका गुप्ता)

रक्तदान ( मोनिका गुप्ता)

 

इस बात मे कोई दो राय नही कि स्वैच्छिक रक्तदान को लेकर आम जन में जागरुकता पहले की अपेक्षा बढी है और वो बढ चढ कर रक्तदान के लिए आगे आ रहे हैं पर इस बात से भी नकारा नही जा सकता कि इस क्षेत्र में बहुत सी ऐसी भ्रांतियाँ या जानकारी का अभाव है जिनकी वजह से लोगो के बढते कदम पीछे हट जाते हैं. तो ऐसे मे क्या तरीके अपनाए जिनसे ना सिर्फ लोग ही आगे आए बल्कि पूरे परिवार के साथ आकर अन्य परिवारों  को भी जागरुक करें.

सबसे पहले तो हमें खुद को ही  जागरुक करना होगा. जैसा कि अगर हम चाह्ते हैं कि रक्तदान के क्षॆत्र में शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदाता हो तो, ऐसे में, कुछ लोगो का कहना यह भी होता है कि ये कोई होने वाली बात है मतलब ही नही. सबसे पहले तो हमें ये नकारात्मक मानसिकता खत्म करनी होगी.विभिन्न उदाहरणों से लोगो को संतुष्ट करना होगा जैसाकि हाल ही मे देश से पोलियों खत्म हुआ है. जिसके बारे में सोचा भी नही जा सकता था तो ये सोचना कि यह असम्भव है सबसे पहले तो मन से यह विचार  निकालवाना होगा और फिर ये कैसे सम्भव है इस पर विचार करना आरम्भ करना होगा. इसके लिए सबसे जरुरी है कि हमारे पास रक्तदान से सम्बंधित बातों की जानकारी हो. अक्सर आधी अधूरी जानकारी के चक्कर में ना तो हम खुद और न ही दूसरो को मोटिवेट कर पाते हैं. यह जानकारी हमें  अपने अपने क्षेत्र के डाक्टर, रक्तदाता या ब्लड बैंक से विस्तार से मिल सकती है.

जानकारी मिलने के बाद हमें शुरुआत अपने ही घर से करनी होगी. हम सभी जानते हैं कि घर परिवार की मुख्य धुरी महिला होती हैं. आमतौर पर यह देखा गया है कि महिलाएं अपने पति या बच्चों के रक्तदान करने की बात तो दूर इस विषय पर चर्चा तक करना पसंद नही करती. इसका सीधा सीधा कारण है उनमें जानकारी का अभाव होना. बहुत से ऐसे उदाहरण मैने देखें हैं जिसमें पति पचास बार से भी ज्यादा बार  रक्तदान कर चुका है पर पत्नी को नही बताया या घर मे मां को नही बताया कि अगर बताया तो बहुत डांट पडेगी. जबकि ऐसा नही है. महिलाए सारे परिवार को बेहद समझादारी से सहेज कर रखती हैं ऐसे में बस जरुरत है कि रक्तदान के बारे मे विस्तार से समझाने की और उनकी सारी भ्रांतियाँ को दूर करने की. अगर वो समझ गईं तो  तो ना सिर्फ वो अपने घर परिवार के लोगो को जागरुक करेगी बल्कि खुद भी रक्तदान के लिए आगे आएगीं. वैसे अपवाद भी बहुत हैं इस क्षेत्र मॆ. समाज मे ऐसी भी महिलाए हैं जो रक्तदान की महत्ता समझती हैं पर इनकी गिनती बस ऊंगलियों पर ही है जबकि हमें इस संख्या को असंख्य करना है.

इसके साथ साथ देश के जाने माने रक्तदाताओं के साथ जनता की समय समय पर राष्ट्रीय स्तर या राज्य स्तर पर रुबरु मुलाकात करवाई जाए ताकि वार्तालाप के माध्यम से जनता के मन में जो भी विचार हैं वो सांझा किए जा सकें. कुछ समय पहले  रक्तदान के क्षेत्र में जबरदस्त कार्य कर रहे  देवव्रत राय साहब को तीन दिन की ट्रेनिंग के सिलसिले में पंचकुला आमंत्रित किया गया था. उनके अनुभवों ने जनता को प्रेरित करने के साथ साथ बहुत प्रभाव भी छोडा. उनका आना एक मील का पत्थर  साबित हुआ इसलिए समय समय पर ऐसे व्यक्तित्व  को आमंत्रित करते रहेंगें तो निसंदेह जनता की रक्तदान से सम्बंधित जानकारी भी मिलेगी और ज्ञिज्ञासाओं का समाधान भी होता रहेगा.

इस बात में कोई शक नही कि विभिन्न राज्यों के कुछ लोग निस्वार्थ भाव से रक्तदान के क्षेत्र में बहुत सराहनीय कार्य कर रहे हैं. टीम बना कर या ब्लाग के माध्यम से या फिर वेब साईट बनाकर अपने अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं. उनके काम करने के तरीके को, चित्रों या पोस्टर्स के माध्यम से प्रदर्शिनी रुप में लगाया जाएगा तो बहुत कुछ सीखने को मिलेगा.

 कुछ खास मौकों पर रक्तदाताओं और उनके परिवारो को सम्मानित करते रहने से भी रक्तदान के प्रति उत्साह बढता है. मैने स्वयं अनेक कार्यक्रम ऐसे देखें हैं जहां मंच पर रक्तदाता परिवारों को बुला कर उनके अनुभव सांझा किए जाते हैं और उन्हें सम्मानित भी किया जाता है. इतना ही नही जिसने एक बार भी (खासतौर पर महिला) रक्तदान किया है उसके अनुभव भी पूछे जाते हैं और सम्मान देकर प्रेरित किया जाता है. यकीन मानिए इस तरह से उनका बोलना उन लोगो पर  बहुत प्रभाव डालता है जिन्होने एक बार भी रक्तदान नही किया.

जब हम परिवार की बात करते हैं तो मन में बुजुर्गों की छवि के साथ साथ बच्चों की छवि भी उभर कर आती है. बच्चें हमारे देश का भविष्य हैं. अगर हम नींव भी मजबूत बना देंगें तो आने वाले समय में जागरुकता खुद ब खुद बढ जाएगी. स्कूल के पाठय क्रम में या फिर एक स्पेशल क्लास इसी से सम्बंधित होनी चाहिए. छात्रो का  समय समय पर हीमोग्लोबिन चैक होना चाहिए ताकि बचपन से ही वो अपने स्वास्थय का ख्याल रखें.  नियमित चैकअप से खानपान के बारे मे जागरुकता भी बढेगी. खासकर लडकियां पौष्टिक  भोजन लेती रहेंगी और 18 साल के होते होते तक वो बेझिझक रक्तदान कर पाएगीं.

रक्तदान से सम्बंधित एक पत्रिका या अखबार निकले और उसमे पूरे देश के रक्तदान की मुहिम से जुडे लोगों के परिचय और उनका अनुभव हो तो इससे भी जागरुकता लाई जा सकती है. इसी के साथ साथ सोशल नेट वर्किग  साईट जैसे कि फेसबुक पर भी पेज बना कर पूरे देश से जुडा जा सकता है और नई नई जानकरी भी मिल सकती है.

कहने का आशय यह है कि जनता को, उनके परिवार को स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति  प्रोत्साहित करने के सैकडो तरीके हैं बस जरुरी है कि हमारे भीतर की लग्न, एक जोश,एक जज्बा, एक कर्मठता को जगाने की. अगर वो जाग गया तो हमें अपने मकसद से कामयाब होने से कोई ताकत नही रोक सकती.

रक्तदान की महत्ता लेख  आपको कैसा लगा ?? जरुर बताईएगा !!! 

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3. जय रक्तदाता

                   जय रक्तदाता

बात 1974 की हैं तब मैं  नौ साल की थी. हम हरियाणा के जींद मे रहते थे. वहां शाम को अक्सर रेस्ट हाउस मे खेलने जाते. वहाँ  एक पानी से भरा pond था. खेलते खेलते अचानक एक लडकी उसमें  गिर गई बच्चे तो बहुत खेल् रहे थे पर मैने आगे बढ कर  उसे डूबने से  बचाया.  दिन सभी बच्चे मेरी जयजयकार करते  हुए  उस लडकी को घर ले गए. उस दिन के बाद से  और लगभग आज से तीन साल पहले तक मैं यह बात हर किसी को बताती कि मैने एक बच्ची को डूबने से बचाया.( वैसे वो लडकी आज चंढीगढ मे सफल वकील है) 

पर तीन साल पहले जब मुझे  रक्तदान के बारे मे जानकारी हुई और  मैने इस क्षेत्र मे काम करना शुरु किया तो उस बचपन की धटना को मै बिल्कुल भूलती चली गई. तीन साल पहले एक मित्र का फोन आया कि 2 साल की बच्ची के दिल आप्रेशन होना है खून चाहिए तब  संजय गुप्ता जी की मदद से दो चार डाक्टरो को फोन किया और  अनायास ही उस बच्ची की मदद  हो गई यानि खून का इंतजाम करवा दिया और दस दिन बाद बच्ची  सकुशल घर लौट गई. इसके बाद और भी फोन आने लगे और  मैने अपना देश भर में नेट वर्क बनाना शुरु किया और तब से अब तक कितने  लोगो की मदद कर चुकी हू अब गिनती भी नही है इसके लिए मेरा अकेली का  योगदान नही था. इसके लिए मेरे मित्र  बहुत सहायक सिद्द हुए हालाकि बहुत को तो मैं जानती भी नही हू मात्र फोन पर ही बात हुई  पर यह जरुर पता था कि यह लोग रक्तदान के प्रति बेहद बेहद जागरुक है और वाकई मे इस क्षेत्र मे कुछ करना चाहते हैं

14 जून वर्ड ब्लड डोनर्स डे के उपलक्ष मे मैं अपने कुछ रक्तदाता  दोस्तों को धन्यवाद देना चाह्ती हूं  डाक्टर संगीता पाठक(दिल्ली), डाक्टर रवनीत कौर(चंडीगढ), श्री राकेश सांगर (पंचकुला) , दिल्ली की ब्लड कनेक्ट की पूरी कर्मठ, जोशीली और मेहनती  टीम,  श्री राजेंद्र महेश्वरी(भीलवाडा), श्री दीपक शुक्ला(जलगांव) , डाक्टर सोनू सिह (दिल्ली),  जगदीश कुमार (जम्मू) संगीता वधवा(मुम्बई) 

बात ये नही है कि ये कहाँ  कहां रहते हैं  आज आन लाईन के जमाने मे सब तुरंत हो जाता है. इन  का नेट वर्क इतना मजबूत है कि कोशिश करके ये कही न कही से रक्तदाता खोज ही लेते हैं आज की तारीख मे मेरे पास ऐसे 30 से ज्यादा नाम हैं जो इस क्षेत्र मे अभूतपूर्व कार्य कर रहे हैं और मेरा प्रयास यही रहता है कि आज की तारीख मे किसी भी जरुरत मंद का फोन आए तो मै कैसे भी करके मदद कर सकूं.

इन सभी ने मुझे विश्वास जताया है कि जब भी रक्त की जरुरत हो आप फोन करिए इंतजाम हो जाएगा. मुझे लगता है कि दुख और परेशानी की घडी मे अगर ये शब्द सुनने को मिल जाए तो तकलीफ आधी हो जाती है. 

बेशक, रक्तदान के क्षॆत्र मे अभी बहुत बदलाव आना बाकि है लोगो मे जागरुकता लानी बहुत जरुरी है पर जब ऐसे कर्मठ और मेहनती लोग होंगें तो जल्द ही वो दिन भी आएगा कि जब देश मे शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान होगा. 

यकीन मानिए बहुत खुशी का अहसास होता है जब वो स्वस्थ होकर घर चला जाते  है. जरुरतमंंद को जब कहती हूं कि आप चिंता मत कीजिए इंतजाम हो जाएगा तो उसकी फोन पर भराई आवाज मे जो एक खुशी झलकती है वो बयान नही की जा सकती. यकीन मानिए उस दिन खुशी के मारे  भूख प्यास भी उड जाती है.

अंत मैं बहुत  बहुत धन्यवाद देती हूँ डाक्टर युद्दबीर सिह ख्यालिया जी का जिन्होने मुझे ISBTI( इंडियन सोसाईटी आफ ब्लड ट्रासफ्यूजन एंड ईम्योनोहैमोटोलोजी) के माध्यम से रक्तदान की महत्ता से रुबरु करवाया.

मोनिका गुप्ता

 

 

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