हजम नही हुई बात …
दिल्ली का बजट पेश किया जा रहा था और मैं और मेरी सहेली मणि बाते करते करते मिलावट तक जा पहुंचे मुझे हैरानी हुई कि वो मिलावट के बारे मे ज्यादा नही बोल रही. कारण पूछ्ने पर उसने बताया कि कुछ खास नही बस बचपन में वो पैंसिल का सिक्का बहुत खाती थी. अरे !! मैने कहा कि मुल्तानी मिट्टी और स्लेटी तक तो ठीक है पर मैने पैंसिल का सिक्का तो मैने भी कभी नही खाया.
उसने बताया कि जब उसका बेटा छोटा था और वाकर में बाहर खडा हो जाता था तो कई बार लगता था कि चुपचाप क्या कर रहा है आवाज भी नही आ रही तब देखती कि वो बडे मजे से गमले के पास खडा होकर कभी मिट्टी खाता तो कभी दीवार से खुरच खुरच कर दीवार की पापडी बहुत शौक से खाता था.
बाद में पता चला कि ये कैल्शियम की कमी से होता है.
पिछ्ले दिनों मैगी के साथ साथ जब दूध मे भी मिलावट का सुना तो वो खुद खालिस दूध लेने दूधिए के पास जाने लगी पर दूध इतना खालिस था कि पचा ही नही. पेट दर्द रहने लगा इसलिए उसमे पानी मिलाकर पीना पडा.
ह हा हा !!मैने कहा कि असल में, हमारा शरीर मिलावट का इतना आदी हो चला है कि खालिस चीज हजम ही नही होती… मुझे मार्किट जाना था तो मैने उससे जाते हुए पूछा कि तेरे लिए पैंसिल लाऊ स्लेटी लाऊ या मुल्तानी मिट्टी क्या खाएगी !!!
| Harit Khabar
किसी भी प्रकार की खाद्य सामग्री में मिलावट का शक होने पर प्रारंभिक जांच एफडीए (Food and Drug Administration) के अधिकारी करते हैं। ये अधिकारी दुकान या उस जगह पर जहाँ कथित मिलावटी खाद्य पदार्थ बन रहा है, से नमूने इकठ्ठा कर आगे की जाँच के लिए प्रयोगशाला में भेजते हैं। पर एफडीए के अधिकारियों का कहना है कि वह हर जगह जा-जा कर ऐसा कर नहीं सकते क्योंकि एक तो केवल शक के आधार पर वे कितनी जगहों से नमूने इकठ्ठा करें? दूसरा, एफडीए के पास साधनों की कमी है और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विभाग के पास अधिकारियों की भी इतनी अधिक संख्या नहीं है कि आसानी से हर संदिग्ध जगह से नमूने लिए जा सके। See more…
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