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1. हमारी धरोहर

हमारी धरोहर जोकि खंडहर होती जा रही हैं. आजकल ऐतिहासिक  धारावाहिको का बहुत बोलबाला है . अच्छा भी है इसी बहाने ही सही हमें अपने इतिहास की जानकारी मिलती है कि उस समय उनका रहन सहन, खान पान, आभूषण आदि पहनावा कैसा था और सबसे ज्यादा आकर्षित करती है उस जमाने की इमारते … बडे बडे ऊंचे महल जोकि आज खंडहर हो चुके  हैं . वैसे कम से कम हम उन खंडहरों को तो देख पा रहे हैं यही हालात रहे तो पर आगे आनी वाली पीढी तो ये भी नही देख पाएगी. अफसोस ये सिर्फ धारावाहिको तक में  ही सिमट कर रह जाएगा. कुछ समय पहले  दिल्ली में हुमायूं के मकबरे को देखने का मौका मिला. उसकी ना सिर्फ मरम्मत की गई है बल्कि मूल भवन निर्माण सामग्री और तकनीकों का इस्तेमाल कर उसके सौंदर्य की पुनर्प्रतिष्ठा भी कर दी गई पर दिल्ली और देश के बाकी धरोहरों का क्या?

 

विश्व धरोहर स्थल

मानवता के लिए अत्यंत महत्व की जगह, जो आगे आने वाली पीढि़यों के लिए बचाकर रखी जानी होती हैं, उन्हें विश्व धरोहर स्थल (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) के रूप में जाना जाता है। ऐसे महत्वपूर्ण स्थलों के संरक्षण की पहल यूनेस्को द्वारा की गई। इस आशय की एक अंतर्राष्ट्रीय संधि जो कि विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर संरक्षण की बात करती है के 1972 में लागू की गई।

विश्व धरोहर समिति इस संधि के तहत् निम्न तीन श्रेणियों में आने वाली संपत्तियों को शामिल करती है –

प्राकृतिक धरोहर स्थल – ऐसी धरोहर भौतिक या भौगोलिक प्राकृतिक निर्माण का परिणाम या भौतिक और भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत सुंदर या वैज्ञानिक महत्व की जगह या भौतिक और भौगोलिक महत्व वाली यह जगह किसी विलुप्ति के कगार पर खड़े जीव या वनस्पति का प्राकृतिक आवास हो सकती है।
सांस्कृतिक धरोहर स्थल – इस श्रेणी की धरोहर में स्मारक, स्थापत्य की इमारतें, मूर्तिकारी, चित्रकारी, स्थापत्य की झलक वाले, शिलालेख, गुफा आवास और वैश्विक महत्व वाले स्थान; इमारतों का समूह, अकेली इमारतें या आपस में संबद्ध इमारतों का समूह; स्थापत्य में किया मानव का काम या प्रकृति और मानव के संयुक्त प्रयास का प्रतिफल, जो कि ऐतिहासिक, सौंदर्य, जातीय, मानवविज्ञान या वैश्विक दृष्टि से महत्व की हो, शामिल की जाती हैं।
मिश्रित धरोहर स्थल – इस श्रेणी के अंतर्गत् वह धरोहर स्थल आते हैं जो कि प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों ही रूपों में महत्वपूर्ण होती हैं।

भारत को विश्व धरोहर सूची में 14 नवंबर 1977 में स्थान मिला। तब से अब तक पांच भारतीय स्थलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया जा चुका है। इसके अलावा फूलों की घाटी को नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के एक भाग रूप में इस सूची में शामिल कर लिया गया है।

भारतीय विश्व धरोहर स्थल –

काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क (1985)
केवलादेव राष्ट्रीय पार्क (1985)
मानस वन्यजीव सेंक्चुरी (1985)
नंदा देवी (1988) तथा फूलों की घाटी (2005), नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के विस्तार के रूप में
सुदरबन राष्ट्रीय पार्क (1987)

http://www.dw.de/धरोहर-संभालना-कब-सीखेगा-भारत/a-17181439बदहाल इमारते

पर क्या हमने इससे कोई सबक लिया? बिलकुल नहीं. आजादी के समय हमारे देश में ऐतिहासिक महत्व की जितनी इमारतें थीं, आज उनकी तादाद काफी हद तक घट चुकी है. अनेक इमारतों पर लोगों ने अवैध कब्जे कर लिए, तोड़ कर नई इमारतें खड़ी कर लीं और उनके इर्द-गिर्द इतना निर्माण कर लिया कि उन ऐतिहासिक इमारतों की पहचान ही खत्म हो गई. दूर क्यों जाएं, राजधानी दिल्ली की ही बात करें. ऐतिहासिक निजामुद्दीन बस्ती की जिस इमारत में सुल्तान मुहम्मद बिन-तुगलक के शासनकाल में महान यायावर इब्नबतूता आकर रहे थे, उसे भी तोड़ दिया गया है और उसकी जगह नया भवन बना लिया गया है. पुलिस और नगर निगम ऐसी घटनाओं के मूक दर्शक बने रहते हैं. अव्वल तो पुरातात्विक सर्वेक्षण स्वयं इस प्रकार की घटनाओं के प्रति उदासीनता बरतता है, और जब कभी वह हरकत में आता भी है तो अतिक्रमण हटाने के काम में उसकी मदद करने के लिए आवश्यक पुलिस बल और स्थानीय प्रशासन का समय पर अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता. See more…

कोई दो राय नही है कि खासियतें खींचती हैं दुनिया को हमारी और आने के लिए …

देश में  खान पान हो, रहन सहन या फिर तीज त्यौहार और रस्म अदावतें, सब धरोहर की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी सदियों से समाज की ओर से आगे बढ़ रही है. लखनऊ की नफासत, बनारस की अदावत या दिल्ली की शान ओ शौकत से लबरेज तहजीब, सब का अंदाज ए बयां कुछ और ही है. ये इतिहास का अकाट्य सत्य है कि अपनी सभ्यता संस्कृति से बेइंतहा मोहब्बत करने वाले भारतीय लोगों में अतीत की विरासत से रूबरू कराती धरोहरों के लिए खास  लगाव होने के वाबजूद सरकार के ध्यान न दिए जाने पर   विरासत से जुड़ी धरोहरें खंडहर में तब्दील होती जा रही है. उए सबसे बडा दुर्भाग्य माना जा सकता है .

 

बोलते खंडहरों से संवाद

http://dainiktribuneonline.com/2015/03/बोलते-खंडहरों-से-संवाद/हालाकि बोलते पत्थरों की जुबान को आपकी अपनी भाषा, आपकी लय-ताल के साथ पेश करने का जिम्मा देश की कुछ प्रमुख संगठनों ने संभाला है और आपके लिए विरासत की सैर के बहाने इतिहास से दो-चार होने के कुछ बेहद खास पलों को संजोया है। 1857 के गदर के तार दिल्ली से कैसे जुड़े थे? जामा मस्जिद में नमाज़ अता कर निकले मुगल सम्राट औरंगज़ेेब के हिंदू फरियादी और काशी विश्वनाथ मंदिर का क्या रिश्ता है? क्या सचमुच आज से सौ साल पहले तक शाहजहांनाबाद शहर की हदबंदी से बाहर निकलने का मतलब होता था कि आप शिकार पर जा रहे हैं? इन रोचक सवालों के उतने ही रोचक जवाब आपको इतिहास की पोथियों में भले ही घंटों बिताने पर पता चलें लेकिन धरोहरों से संवाद कायम करने वाली हेरिटेज वॉक में आपको ऐसी ही ढेरों जानकारी चुटकियों में मिल जाती हैं। आपके अपने शहर के सीने में ऐसे कितने ही किस्से-कहानियां और राज़ छिपे हैं। दिल्ली उन गिने-चुने आधुनिक शहरों में से है, जिसके पिछवाड़े आज भी इतिहास की दस्तक साफ सुनी जा सकती है। यहां के खंडहरों, भग्नावशेषों और किलों से लेकर चांदनी चौक की गलियों-कूचों तक में पुराने दिनों की महक अब भी पसरी हुई है। जरूरत है तो बस थोड़ा वक्त निकालकर इतिहास की उन धड़कनों को सुनने की जो इस दौर के भागते-दौड़ते इनसान से गुफ्तगू करने के लिए हरदम तैयार हैं। इस क्रम में सबसे पहले बात करें इंटैक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज) की जो कई सालों से हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को हेरिटेज वॉक जैसे आयोजनों के माध्यम से रोचक अंदाज़ में परोसती आयी है। इंटैक ने राजधानी के खुशनुमा मौसम के मद्देनजऱ फिर कुछ गलियों-कूचों, दयारों और महलों-किलों की बरसों पुरानी परतों में समाए इतिहास को उलट-पुलट करने का कार्यक्रम बना लिया है। इस कड़ी में संस्था हर वीकेंड पर दिल्लीवासियों को अपनी धरोहर की सैर पर ले जाती है। पिछले दिनों शाहजहांनाबाद के बाजारों से लेकर दक्षिण दिल्ली में महरौली के पुरातत्व पार्क और पुरानी दिल्ली में तुर्कमान गेट से बड शाह बुला तक की सैर करायी गई। जाने-माने इतिहासकार अपनी रोचक शैली में राजधानीवासियों को अपने शहर के बीते दौर को जानने-समझने का मौका देते हैं। इंटैक का यह सिलसिला अभी जारी रहेगा और लोधी गार्डन में खड़े दिल्ली सल्तनत युग की याद ताज़ा कराते हुए ऐतिहासिक खण्डहरों से होते हुए पुराने किले के भग्नावशेषों से रूबरू कराएगा। हेरिटेज वॉक प्राय: सवेरे 8 से 11 बजे के बीच शनिवार और रविवार को आयोजित की जाती है ताकि स्कूल-कॉलेजों के छात्रों के अलावा वे नौकरीपेशा भी इनमें शामिल हो सकें जिन्हें खण्डहरों से आती इतिहास की आवाज़ें सुनने का शौक है।  जरूरी नहीं कि इतिहास की आवाज़ सुनने के लिए आप इतिहास के छात्र हों, अगर इस शहर में खड़े फिरोज़शाह कोटला में आपकी दिलचस्पी क्रिकेट से आगे जाती है तो यकीनन इस 14वीं सदी के किले की बची-खुची दीवारें आज भी आपकी बोट जोह रही हैं। दिल्ली सरकार के संगठन दिल्ली हेरिटेज मैनेजमेंट सेक्रेटेरियेट ने भी इस शहर के इतिहास पर पड़ी वक्त की गर्द को झाड़ने-पोंछने का जिम्मा लिया है और हेरिटेज वॉक के बहाने बीते वक्त की सैर करा रहे हैं। विरासत की सैर का जिम्मा संभालने वाले इतिहासकार (वॉक लीडर) जैसे कथा-कहानियों के अद‍्भुत शिल्पी भी होते हैं। हमारे ही शहर के उन पक्षों को वो रोचक शैली में प्रस्तुत करते हैं जिनसे हम अकसर अनजान होते हैं या फिर जिनके बारे में बहुत थोड़ा जानते हैं। सप्ताहांत की शुरुआत का इससे बेहतर तरीका भला और क्या होगा कि आप अपने आपको जानने से दिन की शुरुआत करें। यकीन मानिए, हम भले ही खुद को जानने-समझने और पहचानने का कितना भी दावा क्यों न करते आए हों, लेकिन जब ऐतिहासिक धरोहरों से रूबरू होते हैं तो लगता है जैसे इतिहास इनमें परत-दर-परत दफन है और हम अपने ही आसपास खड़ी इन इमारतों से बेपरवाह रहते आए हैं। हेरिटेज वॉक कराने वाले इतिहासकार कभी दिल्ली के दरवाज़ों से गुजरते हुए उन हालातों का विश्लेषण करते हैं जिनके चलते दिल्ली शहर बहुत पहले से ही हमलावरों के निशाने पर रहा है और कई-कई बार उजड़कर बार-बार बसता आया है। कभी अजमेरी गेट का इतिहास टटोलते हैं तो फिर तुर्कमान गेट की खैर-खबर लेते हैं और कभी लाहौरी गेट या कश्मीर जाने वाले व्यापारियों के कारवां से किसी ज़माने में गुलज़ार रहने वाले कश्मीरी गेट का हाल-ए-दिल सुना-सुनाया जाता है। इसी तरह, हुमायूं के मकबरे की खोज-खबर लेने तो कभी कुतुब मीनार और उसके आसपास खड़े इतिहास के सिपहसालारों का भी हालचाल जानने हेरिटेज वॉक टोली पहुंचती है। दिल्ली सरकार के लिए हेरिटेज वॉक कराती आयीं जानी-मानी शख्सियत नवीना जाफा कहती हैं कि शुरुआत में इस तरह की वॉक अभिजात्य समझी जाती थीं। यहां तक कि एक समय था जब सिर्फ विदेशी सैलानी ही इनमें शिरकत करते थे जबकि शहरवासियों को लगता था कि इस तरह की सैर से उनका क्या वास्ता! यही वजह थी कि इनमें आम जनता की भागीदारी काफी सीमित रहा करती थी वहीं अब राजधानी का मध्य वर्ग इनसे जुड़ रहा है और वीकेन्ड हेरिटेज वॉक में शामिल लोगों की बढ़ती संख्या इस बात का पुख्ता सबूत है कि दिल्लीवासियों को अपने अतीत से बहुत प्यार है। दिल्ली कैरावान ऐसा ही हरिटेज वॉक ग्रुप है जो तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। कभी दिल्ली-6 की गलियों-कूचों में तो कभी पहाड़गंज की गलियों की खान-पान संस्कृति से रूबरू कराने के साथ-साथ यह शहर की ऐतिहासिक परंपराओं की झलक भी बखूबी पेश करता है। देसी-विदेशी सैलानी और दिल्लीवासी तेजी से उनसे जुड़ रहे हैं। धरोहरों को टटोलने के लिए फेसबुक के जरिए निमंत्रण, प्रचार और फेसबुक फैन्स का नेटवर्क काफी उपयोगी साबित हो रहा है।

इतिहास और ऐतिहासिक धरोहरों की वो समझ दी है कि आज अगर मेरे स्कूली टीचर मुझसे मिलें तो ‘स्टम्प’ हो जाएंगे। इतिहास की जानकारी न रखने वाले सामान्य लोगों को भी इस तरह की विरासत की सैर करने पर महसूस होता है कि पत्थर सचमुच बोलते हैं। खण्डहर खुद-ब-खुद अपनी दीवारों में कैद किस्से-कहानियां कहने लगते हैं और गुजरे जमाने के राजाओं-रानियों की प्रेम कहानियों से लेकर खूनी इतिहास की परतें खुलने लगती हैं। विरासत की सैर और कला के अन्य कार्यक्रमों की जानकारी देने वाली कई वेबसाइटें और फेसबुक पेज भी आजकल लोकप्रिय हो रहे हैं। तो अब आप सुबह-सवेरे उठने और अपना ट्रैक सूट पहनकर इतिहास को जानने के लिए निकलने को तैयार हो जाइये। See more…

कुछ भी हो हमें इन इमारतों को सहेजना ही होगा ताकि हम आने वाली पीढी के सामने गर्व से सिर उठा कर कह सके ये है मेरा भारत …

The post हमारी धरोहर appeared first on Monica Gupta.

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