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1. माँ को भी याद आती है

 

 

अक्सर

माँ को भी याद आती है

अपनी माँ की हर बात

उसका वो

नर्म हाथो से रोटी का निवाला खिलाना

होस्टल छोडने जाते हुए वो डबडबाई आखों से निहारना

उसका पल्लू पकड़कर आगे पीछे घूमना

उसके प्यार की आचँ से तपता बुखार उतर जाना

कम अंक लाने पर उसका रुठना पर जल्दी ही मान जाना

अक्सर

माँ को भी याद आती है

अपनी माँ की हर बात

पर माँ तो माँ है

इसलिए बस चंद पल खुद ही सिसक लेती है

और फिर भुला देती है खुद को

पाकर अपने बच्चो को प्यार भरी

छावँ मे,दुलार मे ,मनुहार में

पर अक्सर

माँ को भी याद आती है

अपनी माँ की हर बात

असल मॆं, हम हरदम अपनी मां की बात करते हैं उन्हें याद करते हैं पर हमारी मां को भी अपनी मां की याद आती है … है ना … बस यही सोच कर कविता बन गई … कैसी लगी आपको जरुर बताईगा !!!

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2. Nature

Nature

 plant and sun  photo

Nature

मन की बात

एक तरफ
तपता सूरज
जलती धरा
मन बेचारा
अकेला पड़ा………बेसहारा
दूसरी ओर
नन्हा पौधा
गर्मी की मार
सह ना सका
और
पनपते ही कुम्हला गया
काश
मिल जाता
किसी का सहारा
या फिर शीतल धरा
और पनप जाता
पर……
वो चुपचाप…….खामोश सा
पड़ा रहा
मन भी ऐसा ही है
खामोश, चुपचाप
एकदम अलग-अलग
काश……..
मन कुछ कर सकता
झुलसते पौधे को देखकर
सहला सकता
तभी अचानक
रूक गए मेरे पानी पीते हाथ
उड़ेल दिया पानी
उस नन्हें पर
तब तक
सूरज की लौ
पड़ चुकी थी मद्धम
ठण्ड़े झोंको से
आने लगी उसमे जान
इधर………..
मुस्कुरा उठा मेरा मन
उधर….
जलती धरा भी
शांत हो गर्इ
अब……..
नन्हें को मिल गया था एक सहारा
शीतल धरा का
एक तरफ……….
प्रकृति खिलखिलार्इ
दूसरी तरफ……….
मन मुस्कुराया

Nature

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3. Poem- पहचान

पहचान

नन्हू की चाची
दिव्या की मौसी
गीता की ताई
नीरु की आंटी
जमुना की बाई जी
दीप की भाभी
लीना की देवरानी
रानो की जेठानी
सासू माँ की बहू रानी
माँ की मोना
पति की सुनती हो
रामू की बीबी जी
मणि की मम्मी
इन नामो से मेरी

पहचान कही गुम हो गई
एक दिन
आईने के आगे
खुद को जानने की कोशिश की
तो
मुस्कुरा दिया आईना
और बोला
मेरी नजरो मे ना तुम
चाची हो ना ताई
ना भाभी हो ना बाई
बस

तुम सिर्फ तुम हो
सादगी की मूरत
दयालुता की प्रतीक
प्रेम की देवी

ईश्वर का प्रतिबिम्ब
बस …
तभी से अपने पास
आईना रखने लगी हूं
ताकि पहचान धुंधलाने पर
उसके अक्स मे खुद को जान सकू
पहचान सकू….
कि मैं भी कुछ हूं
कि मैं भी कुछ हूं ….

 

 

 

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4. Poem- जी में आता है

जी मे आता है… (कविता)

जी मे आता है
ये बदल दू
वो बदल दूं
कुछ ऐसा लिखू
कि मच जाए हलचल
सुप्त समाज मे भर दूं नव चेतना
भर दू रंग इस बेरंग दुनिया मे
अंधियारी गलियो मे भर दूं नई रोशनी
फिर
अनायास ही ठिठक जाती हू
क्योकि
मैं भी उसी समाज का हिस्सा हूं
कौन देगा मौका
कौन सुनेगा बात
ना रुपया ना सिफारिश मेरे पास
मेरी कलम कैसे कह पाएगी अपने दिल की बात
फिर बैठे बैठे जी भर आया
अपनी लिखी कविता को फिर दिल से लगाया …

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5. कविता ( फिर कभी और सही)

कभी और सही …. (कविता)

कुछ अल्फाजों को मन के पिंजरे से आजाद तो करना चाह्ती हूं

पर

डरती हूं

कोई इन्हे आहत न कर दे

या

पढ कर किसी के अश्रू न छ्लक जाए

या

चुरा कर कोई अपने ही पिंजरे मे कैद न कर ले

सोचती हूं

हर खुशी , गम , नाराजगी में बरसों से सहेजा है इनको

बहुत अजीज हो चुके हैं ये मेरे

बस

एक टक निहार कर कैद ही रहने दिया

और

रोक लिया आज भी इन्हे उडान भरने से

कभी खुद ब खुद ही ढलक जाए तो अलग बात है

वैसे

फिर कभी और सही ( मोनिका ग़ुप्ता)*

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