मुंबई की बारिश भी तुम्हारी तरह है,
तभी आती है जब भीग नही सकता,
पर आती रोज़ है ये पगली भिगाने,
और मैं पागला छुप भी नही सकता,
ललचाती है मुझे अदाओ से अपनी,
उस मोड़ पर, जहाँ मुड़ नही सकता,
ऐसा संगीत गुनगुनाती है वो अक्सर,
जो मेरे लफ़ज़ो में घुल नही सकता,
वो करती है अनेक भावनाए अंकुरित,
परन्तु दूजा लिबास चुन नही सकता,
बस निहारता रहता हूँ चंचलता को,
जानता हूँ मैं ख्वाब बुन नही सकता,
मुंबई की बारिश तुम्हारी तरह ही है,
निहारता हूँ हर्सू पर, रुक नही सकता,
बरसता यौवन देता है कुछ दर्द, पर,
एहसास के बिना घाव दुख नही सकता || Dr. DV ||
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