ये मेरी पहली कविता थी. मन में भाव तो हमेशा ही उमड घुमड कर आते रहते थे पर ये पहली बार थी जब इन विचारों की दिशा मिली …
कब छटेंगे बादल
दल में बादल, गहरे बादल, काले बादल
उथले बादल, क्षितिज में विचरते बादल,
पर्वतों के ऊपर छत्र की तरह छाए बादल।
बादल………. दलदल बादल,
आखिर………कब छटेंगे ये बादल
क्या बरसात में ही पैर बढ़ा दूँ मैं……….?
की रूक जाऊँ, ठहर जाऊँ मैं………?
ठहर जाऊँ………..??
जिंदगी वैसे ही है ठहरी,ठहरी
कौंधती बिजली………गर्जते बादल,
हलचल मचा रहे मन में,
अरे! बुलबुले बने, टूटे……..,
देख मन में आस जगी…..
काले घन में भी है बिजली चमकी……..
फिर…….. हे मन, तू क्यों है व्यथित……….
क्यों……… आंखों के आगे काले बादल बैठाए हैं…….
ज़रा अश्रू तो पोंछ, पलक साफ कर…….
देखा………..!! छट गए न बादल………
न बादल, न दल में बादल
पैर बढ़ा, चल मंजिल की ओर……….
ठहरी जिंदगी को दे नया बल……..
दल में बादल…….??
भुज बल में भी तो है आंधी…….
देखा…… छट गए ना बादल……….!!
नकारात्मक सोच से शुरु ये कविता आखिरकार सकारात्मकता पर खत्म हुई … आपको कैसी लगी … जरुर बताईएगा
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